शफ़्फ़ाफ़ हीरे लखनऊ !
-अरुण मिश्र.
बेशक़ीमत इल्मो-फ़न के , ऐ ज़ख़ीरे , लखनऊ।।
बज़्मे-तहज़ीबो-अदब के जल्वों पे हो के निसार।
हम हुये शैदाई तेरे , धीरे - धीरे लखनऊ।।
चार - सू चर्चा में है , योरोप से ईरान तक।
लज़्ज़ते - शीरीं - जु़बानी , औ’ ज़मीरे - लखनऊ।।
लच्क्षिमन जी ने किया आ कर के बिसरामो-क़याम।
कुछ तो ऐसा है, तिरे नदिया के तीरे, लखनऊ।।
*
-अरुण मिश्र.
(लखनऊ शहर में इस समय 'लखनऊ महोत्सव' चल रहा है |
इस अवसर पर दुनिया भर में सभी लखनऊ को चाहने वालों
एवं लखनऊ को प्यार करने वालों को यह रचना समर्पित है |
यह पूरी ग़ज़ल पिछले वर्ष २९ नवम्बर २०१० की पोस्ट में
उपलब्ध है | -अरुण मिश्र.)
ऐ ! अवध की खान के शफ़्फ़ाफ़ हीरे , लखनऊ।
बेशक़ीमत इल्मो-फ़न के , ऐ ज़ख़ीरे , लखनऊ।।
बज़्मे-तहज़ीबो-अदब के जल्वों पे हो के निसार।
हम हुये शैदाई तेरे , धीरे - धीरे लखनऊ।।
चार - सू चर्चा में है , योरोप से ईरान तक।
लज़्ज़ते - शीरीं - जु़बानी , औ’ ज़मीरे - लखनऊ।।
लच्क्षिमन जी ने किया आ कर के बिसरामो-क़याम।
कुछ तो ऐसा है, तिरे नदिया के तीरे, लखनऊ।।
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वाह भई अरूण जी वाह
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिय काजल कुमार जी|
जवाब देंहटाएंआभार एवं शुभकामनायें |
-अरुण मिश्र.