ग़ज़ल
-अरुण मिश्र
मीत मेरे, संग मेरे चल।
करने, जग के फेरे, चल॥
चलना ही तो जीवन है।
जीवन की धुन टेरे चल॥
रात बहुत आराम किया।उठ चल, सुबह-सबेरे चल॥
सूरज, जगा रहा तुझको।
कब के ख़त्म अँधेरे चल॥
भव-सागर की लहरों में।
कश्ती अपनी, खे रे! चल॥
वंशी-वन है, बुला रहा।
लकुट-कमरिया ले रे!चल॥
बंधन, बाधा, संशय, भ्रम।
तोड़ के सारे घेरे, चल॥
साधो, सच्ची साध अगर।
मन का मनका, फेरे चल॥
ठगिनी, ठगने को तैयार।
पीछे पड़े, लुटेरे, चल॥
सांझ हुई, सिमटा मेला।
चल नट, अपने डेरे, चल॥
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