-अरुण मिश्र.
सुब्ह फागुन है, शाम फागुन है।
जश्न - ए - खासो-आम फागुन है॥
सूखे चेहरों पे भी आई रंगत।
रंग का एक नाम फागुन है॥
जो मिले, रंग में अपने रंग लो।
पूछो मत नाम-धाम, फागुन है॥
रंग, पिचकारी औ' बच्चों की हँसी।
बस यही ताम-झाम फागुन है॥
बाबा देवर लगे हैं फागुन में।
इस क़दर बे-लगाम फागुन है॥
इसके आँखों की प्यास फागुन है।
उसकी आँखों का ज़ाम फागुन है॥
मौसमों की तमाम हैं ग़ज़लें।
मस्तियों का कलाम फागुन है॥
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