ग़ज़ल
-अरुण मिश्र.
चाँद, शब, छत पे, पुरज़माल आया।
मन , समन्दर हुआ , उछाल आया॥
फिर कोई, आ गया, तसव्वुर में।
फिर मेरे, दर्द में, उबाल आया॥
उसके आरिज हैं, गुलाबी कि, गुलाब।
पेश, गुलशन में, ये सवाल आया॥
ऐसे भी, दिल को, चोट लगती है।
शीशा टूटा, तो ये , ख्याल आया॥
उसकी तो बदज़ुबानी भी, मीठी।
कब 'अरुन', जी में कुछ मलाल आया॥
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