-अरुण मिश्र.
इक नशीला-नशीला सा एहसास है।
ऐसा लगता है, कोई बहुत पास है।
गाँव की बस्तियां, फाग की मस्तियां;
याद आतीं बहुत, फागुनी मास है॥
है उछाहों, उमंगों, तरंगों भरी।
है अबीरों, गुलालों औ' रंगों भरी।
सख्त बाहर से, अन्दर नरम खोये सी;
होली, गुझिया की मीठी है इक तश्तरी॥
हो रहा नेहमय सबका व्यवहार है।
हर हृदय में बही एक रसधार है।
रंग के संग बरसे ठिठोली, हँसी;
देश में होली हँसने का त्यौहार है॥
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