मंगलवार, 6 मार्च 2012

होली गुझिया की मीठी है इक तश्तरी..................



-अरुण मिश्र.

इक   नशीला-नशीला  सा   एहसास  है।
ऐसा   लगता  है,  कोई   बहुत  पास  है।
गाँव  की  बस्तियां, फाग की  मस्तियां;
याद   आतीं  बहुत,   फागुनी   मास  है॥


है    उछाहों,     उमंगों,    तरंगों     भरी।
है    अबीरों,   गुलालों   औ'   रंगों  भरी।
सख्त बाहर से,  अन्दर नरम खोये सी;
होली, गुझिया की मीठी है इक तश्तरी॥ 


हो   रहा   नेहमय  सबका  व्यवहार  है।
हर   हृदय   में   बही   एक  रसधार  है।
रंग   के   संग   बरसे    ठिठोली,   हँसी;
देश  में   होली   हँसने  का  त्यौहार  है॥
                        *
 

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