शनिवार, 31 मई 2014

आज-कल श्रीनगर (कश्मीर) प्रवास पर हूँ।
इस क्रम में कल दिनांक ३० मई, २०१४ को दूध-पथरी
नामक स्थल पर पहुँचा। नैसर्गिक सुषमा के इस सुरम्य 
दिव्यता को काव्यात्मक प्रणामञ्जलि।   











दूध-पथरी (कश्मीर)

-अरुण मिश्र.  


दूध-पथरी। 
दूध की नदियां हों जैसे 
पत्थरोँ के बीच ठहरी। 
बर्फ की सुन्दर लकीरें 
हैं ढलानों पर, छरहरी।
दूध-पथरी।।

शुभ्र हिम से ढँके
ऊपर, शिखर उन्नत।
और, नीचे हरित चादर से 
बिछे हैं, घास के मैदान,
मनहर, दीर्घ, विस्तृत।
जिन्हें चारों ओर से घेरे हुए हैं,
देवदारु तमाम यूँ 
जैसे कि हों 
सजग औ सन्नद्ध 
अनगिन  प्रकृति -प्रहरी।
दूध-पथरी।।

शान्ति का साम्राज्य अद्भुत;
ध्यान केवल भंग  करती है 
नदी की धार कल-कल। 
जिसे छू कर 
बह रही है, हवा चंचल।
फेरती मन-प्राण पर 
शीतल फुरहरी।
दूध-पथरी।।   
       *

            

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