पर्यावरण वन्दना
- अरुण मिश्र
वन्दना करिये धरा की;
धरा के पर्यावरण की।।
झर रहे निर्झर सुरीले,
और नदियाँ बहें कल-कल।
ताल, पोखर, झील, सागर,
हर तरफ है, नीर निर्मल।।
चर-अचर जिसमें सुरक्षित,
स्नेहमय उस आवरण की।।
मन्द, मन्थर पवन शाीतल;
आँधियों का तीव्रतर स्वर।
सर्वव्यापी वायु पर ही,
प्राणियों की साँस निर्भर।।
जीव-जग-जीवनप्रदायिनि-
प्रकृति के, शुभ आचरण की।।
अन्न के भण्डार दे भर,
भूमि उर्वर, शस्य-श्यामल।
भूख सबकी मेटने को-
वृक्ष, फलते हैं मधुर फल।।
माँ धरा की गोद के,
इस मोदमय वातावरण की।।
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(काव्य-संग्रह 'कस्मै देवाय' से साभार)
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