शनिवार, 27 जून 2015

LAWN MEN SHAAM KO GUNGUNATEY HUYE.......

लॉन में शाम को गुनगुनाते हुये .....





तिरे भी पास ऐसा तो कोई जादू नहीं होगा....

-अरुण मिश्र



भले  ज़ाहिर   सहारे  को    कोई    बाज़ू  नहीं  होगा 
मगर   उस  पर  यकीं  तो  बेसहारा  तू   नहीं  होगा 

निकलते रोज़ हैं शम्श-ओ-क़मर फिर डूब जाने को 
पै  तेरे  हुस्न  पर   ये   फ़लसफ़ा   लागू  नहीं  होगा 

नहीं ज़ल्वानशीं देखा था उस को बज़्म में  जब तक 
गुमाँ  ये  था  कभी  दिल  अपना  बेक़ाबू  नहीं होगा 

न   तेरी  याद   भी   आये   हमें   गर  तू   नहीं  चाहे 
तिरे   भी   पास   ऐसा   तो   कोई   जादू  नहीं  होगा

'अरुन'  तू  दूर  होता  है  तो  अक्सर  सोचता  हूँ  मैं 
हमीं  रह  जायगें  तनहा  जो   तनहा  तू  नहीं  होगा

                                                                *




 

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