प्रिय कुशाग्र के जन्म दिवस पर विशेष
नवांकुर...
-अरुण मिश्र
-अरुण मिश्र
रुचिरा ऋचा के जो उगा है |
मिश्र -कुल-वंशावली-मणि-
माल, नव-कौस्तुभ लगा है ||
प्रज्ज्वलित नव - दीप सा,
प्रज्ज्वलित नव - दीप सा,
जो आज घर की देहरी पर |
क्षितिज पर कुल - व्योम के,
चमका नया नक्षत्र भास्वर ||
लहलहाई, वंश की फिर-
बेल, फूटी नई कोंपल|
दूध से आँचल भरा; कुल -
तरु, फला है पूत का फल||
पुष्प जो अभिनव खिला,
परिवार-बगिया में विहंस कर |
गोद दादी के, पितामह के,
ह्रदय में , मोद दे भर ||
हो 'कुशाग्र', कुशाग्र-मेधायुत,
अपरिमित बुद्धि - बल हो|
मंगलम, मधुरं, शुभम, प्रिय,
प्रोज्ज्वल, प्रांजल, प्रबल हो||
*
यह कविता सुनने के लिए दिए गए ऑडियो क्लिप का
लहलहाई, वंश की फिर-
बेल, फूटी नई कोंपल|
दूध से आँचल भरा; कुल -
तरु, फला है पूत का फल||
पुष्प जो अभिनव खिला,
परिवार-बगिया में विहंस कर |
गोद दादी के, पितामह के,
ह्रदय में , मोद दे भर ||
हो 'कुशाग्र', कुशाग्र-मेधायुत,
अपरिमित बुद्धि - बल हो|
मंगलम, मधुरं, शुभम, प्रिय,
प्रोज्ज्वल, प्रांजल, प्रबल हो||
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