जन्माष्टमी पर सब के लिए मंगलकामनाएं
कान्हा ! श्याम ! मुरारी !
-अरुण मिश्र
हे! मोहन, राधा।
बसहु चित्त, छवि जुगल सदा;
हरहु सकल बाधा।।
हे! गुपाल गिरिधारी।
बिगरी कौन बनावै तुम बिन;
राखो लाज हमारी।।
हे! नटवर नागर।
इक तुम्हरो भरोस हिय माँही;
तारो भव सागर।।
कान्हा! श्याम! मुरारी!
गोविंद! माधव! नंद के लाला!
टारो विपति हमारी।।
साँवले, सलोने श्याम!
सोलह कलाओं से पूर्ण; पूर्णकाम।
स्वीकारो कोटिशः प्रणाम।।
*
(तीन पदों की कुछ छोटी-छोटी तुकांत रचनाएँ,
पदवार क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में। )
कान्हा ! श्याम ! मुरारी ! |
कान्हा ! श्याम ! मुरारी !
-अरुण मिश्र
हे! मोहन, राधा।
बसहु चित्त, छवि जुगल सदा;
हरहु सकल बाधा।।
हे! गुपाल गिरिधारी।
बिगरी कौन बनावै तुम बिन;
राखो लाज हमारी।।
हे! नटवर नागर।
इक तुम्हरो भरोस हिय माँही;
तारो भव सागर।।
कान्हा! श्याम! मुरारी!
गोविंद! माधव! नंद के लाला!
टारो विपति हमारी।।
साँवले, सलोने श्याम!
सोलह कलाओं से पूर्ण; पूर्णकाम।
स्वीकारो कोटिशः प्रणाम।।
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(तीन पदों की कुछ छोटी-छोटी तुकांत रचनाएँ,
पदवार क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में। )
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