शनिवार, 28 जुलाई 2018

अब्दुल कलाम............................श्रद्धांजलि


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श्रद्धांजलि
अब्दुल कलाम
भारत की प्रतिभा की प्रतिकृति,
भारत की मेधा प्रबल, मुखर।
भारत की आँखों के सपने,
भारतीय कंठ के गौरव-स्वर।।
चेहरे पर थीं सुन्दर आँखें ,
आँखों में थे सुन्दर सपने।
सपनों में था सुन्दर भविष्य,
तेरे संग स्वप्न बुने सब ने।।
सब की आँखों को सपना दे,
सबको दिखला कर नई डगर।
तुम चले गये हे महामना !
तज कर शरीर अपना नश्वर।।
हैं साश्रु नयन, अवरुद्ध गिरा,
नत-शीश समर्पित है सलाम।
युग-युग तक गूँजे भारत में
यह मधुर नाम 'अब्दुल कलाम’।।
*
-अरुणमिश्र २८/०७/२०१५

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

कारगिल के वीर



A TRIBUTE TO MARTYRS OF KARGIL

कारगिल के वीर 

 -अरुण मिश्र

तुमने बज़्मे-जंग में 
छलकाये  अपने खूँ के जाम।
कारगिल के वीर तुमको, 
देश  का सौ-सौ सलाम।।

धूर्त   दुश्मन   जब  घुसा,  
घर  में  हमारे  चोर सा।
बंकरों   में  जब   हमारे    
ही    जमाया   मोरचा।
उसपे थीं लंदन की सिगरेट्स, 
तुम पे जूते तक नहीं।
लात फिर भी खा तुम्हारी,  
पैर  रख  सर  पर भगा।।

तुम हिमानी चोटियों पर 
टांक आये  अपना नाम।
कारगिल के वीर तुमको, 
देश  का सौ-सौ सलाम।।

वीरता   के  आवरण  में,  
शूरता   का   आचरण।
शत्रुओं  के  शीश  पर,  
शोभित हुये विजयी चरण।
देख कर  पुरुषार्थ, रण में   
मृत्यु  तक मोहित हुई।
डालकर जयमाल, जय का,  
कर  लिया तेरा वरण।।

उन शहीदों पर वतन के,  
है निछावर  ये कलाम।
कारगिल के वीर तुमको, 
देश का सौ-सौ सलाम।।

एक-एक, चोटी को तुमने,   
खून  से  सींचा जवान।
जान की बाज़ी लगा दी, 
औ' बचा ली माँ की आन।
है तेरी कुर्बानियों के रंग से   
रंगी हुई, आज की  ये जश्ने-
आज़ादी, तिरंगे की ये शान।।

सज गये गौरव-मुकुट से, 
भाल-भारत के ललाम।
कारगिल के वीर तुमको, 
देश  का सौ-सौ सलाम।।

                                        *
(संग्रह 'न जाने किन ज़मीनों से' से साभार )
२७ जुलाई , २०१५ को पूर्वप्रकाशित 

रविवार, 22 जुलाई 2018

अब के बादल ऐसे बरसे.....












अब के बादल ऐसे बरसे.....

-अरुण मिश्र 

अब  के   बादल   ऐसे  बरसे। 
भीग  गया  है  मन  भीतर  से।।

कजरायी   हर   बदली-बदली। 
नयन-नयन  काजल को तरसे।।

मौसम  के   कुछ   हुए  इशारे। 
बूँदें  निकल  पड़ीं  सब  घर से।।

ढरक गयी  है  रस  की  गागर।
बूँद-बूँद   छलकी   अम्बर   से।।

लोक-लाज  सब   बिसरी राधा। 
चूनर  सरक  गयी   है  सर  से।।

नाचे   मोर   पंख   फैला   कर। 
मुग्ध   मयूरी   इस    तेवर   से।।

चलो   कदम  पर   झूला  झूलें। 
भावज   चुहल   करे   देवर  से।।

मन   बाहर - बाहर  को  ललचे। 
खींच   रहा    कोई    भीतर   से।।

उन्हें 'अरुन' क्या बारिश-बादल। 
जो  दुबके   बिजली  के  डर  से।।
                    *

बुधवार, 18 जुलाई 2018

आया सावन रिझा रहे बादल....

















आया सावन रिझा रहे बादल..


-अरुण मिश्र

आया   सावन,   रिझा   रहे   बादल।
मुझको  छत  पर  बुला  रहे  बादल।।

छत की ख़ल्वत औ' अब्र का मौसम।
चाह    मीठी,    जगा    रहे    बादल।।

धुन   जो   लब   से   तेरे   चुराये   हैं।
कानो   में    गुनगुना    रहे    बादल।।

तेरे     भेजे     हुए    से    लगते    हैं।
हर   अदा   से   लुभा    रहे   बादल।।

याद  पर  याद  आ  रही  है  'अरुन'।
बादलों   पर   हैं   छा   रहे    बादल।।
                           *