रविवार, 22 जुलाई 2018

अब के बादल ऐसे बरसे.....












अब के बादल ऐसे बरसे.....

-अरुण मिश्र 

अब  के   बादल   ऐसे  बरसे। 
भीग  गया  है  मन  भीतर  से।।

कजरायी   हर   बदली-बदली। 
नयन-नयन  काजल को तरसे।।

मौसम  के   कुछ   हुए  इशारे। 
बूँदें  निकल  पड़ीं  सब  घर से।।

ढरक गयी  है  रस  की  गागर।
बूँद-बूँद   छलकी   अम्बर   से।।

लोक-लाज  सब   बिसरी राधा। 
चूनर  सरक  गयी   है  सर  से।।

नाचे   मोर   पंख   फैला   कर। 
मुग्ध   मयूरी   इस    तेवर   से।।

चलो   कदम  पर   झूला  झूलें। 
भावज   चुहल   करे   देवर  से।।

मन   बाहर - बाहर  को  ललचे। 
खींच   रहा    कोई    भीतर   से।।

उन्हें 'अरुन' क्या बारिश-बादल। 
जो  दुबके   बिजली  के  डर  से।।
                    *

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