बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

ललितलवङ्गलतापरिशीलनकोमलमलयसमीरे...


https://youtu.be/28DB8iR9DJo   Dr. M. Balamuralikrishna

THE GREAT LITERATURE AND GREAT MUSIC OF INDIA
Raising the Soul to Spiritual Zenith

From Geet Govindam of the great poet Shri Jai Dev

ललितलवङ्गलतापरिशीलनकोमलमलयसमीरे...

॥ गीतम् ३ ॥

ललितलवङ्गलतापरिशीलनकोमलमलयसमीरे ।
मधुकरनिकरकरम्बितकोकिलकूजितकुञ्जकुटीरे ॥

विहरति हरिरिह सरसवसन्ते नृत्यति युवतिजनेन
समं सखि विरहिजनस्य दुरन्ते ॥ १॥ विहरति

उन्मदमदनमनोरथपथिकवधूजनजनितविलापे ।
अलिकुलसंकुलकुसुमसमूहनिराकुलबकुलकलापे ॥ २॥ विहरति

मृगमदसौरभरभसवशंवदनवदलमालतमाले ।
युवजनहृदयविदारणमनसिजनखरुचिकिंशुकजाले ॥ ३॥ विहरति

मदनमहीपतिकनकदण्डरुचिकेसरकुसुमविकासे ।
मिलितशिलीमुखपाटलिपटलकृतस्मरतूणविलासे ॥ ४॥ विहरति

विगलितलज्जितजगदवलोकनतरुणकरुणकृतहासे ।
विरहिनिकृन्तनकुन्तमुखाकृतिकेतकदन्तुरिताशे ॥ ५॥ विहरति

माधविकापरिमलललिते नवमालिकजातिसुगन्धौ ।
मुनिमनसामपि मोहनकारिणि तरुणाकारणबन्धौ ॥ ६॥ विहरति

स्फुरदतिमुक्तलतापरिरम्भणमुकुलितपुलकितचूते ।
बृन्दावनविपिने परिसरपरिगतयमुनाजलपूते ॥ ७॥ विहरति

श्रीजयदेवभणितमिदमुदयति हरिचरणस्मृतिसारम् ।
सरसवसन्तसमयवनवर्णनमनुगतमदनविकारम् ॥ ८॥ विहरति
                                      *

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

धीर समीरे यमुना तीरे... जयदेव...गीतगोविन्द...स्वर : रघुनाथ पाणिग्रही





Dheera Sameere Yamuna Teere.. 

Geeta govinda : Shri Jayadeva

Sung by
Pandit Raghunath Panigrahi.

Pandit Raghunath Panigrahi (1932-2013) is a legend.
Famous Indian classical singer and Music Director.
A noted vocalist of Gita Govinda, he left a promising
career in film music in Chennai, to provide vocal support
in his wife, a legendary Odissi danseuse Sanjukta Panigrahi's
performances.
He has lifetime contribution towards promoting, propagating
and popularising the life and works of Shri Jayadeva, messages
of Geeta Govinda and the cult of Lord Jagannatha.

॥ गीतम् ११ ॥
रतिसुखसारे गतमभिसारे मदनमनोहरवेशम् । न कुरु नितम्बिनि गमनविलम्बनमनुसर तं हृदयेशम् ॥
धीरसमीरे यमुनातीरे वसति वने वनमाली गोपीपीनपयोधरमर्दनचञ्चलकरयुगशाली ॥ १॥
नाम समेतं कृतसंकेतं वादयते मृदुवेणुम् । बहु मनुते ननु ते तनुसंगतपवनचलितमपि रेणुम् ॥ २॥
पतति पतत्रे विचलति पत्रे शङ्कितभवदुपयानम् । रचयति शयनं सचकितनयनं पश्यति तव पन्थानम् ॥३॥
मुखरमधीरं त्यज मञ्जीरं रिपुमिव केलिसुलोलम् । चल सखि कुञ्जं सतिमिरपुञ्जं शीलय नीलनिचोलम् ॥ ४॥
उरसि मुरारेरुपहितहारे घन इव तरलबलाके । तडिदिव पीते रतिविपरीते राजसि सुकृतविपाके ॥ ५॥
विगलितवसनं परिहृतरसनं घटय जघनमपिधानम् । किसलयशयने पङ्कजनयने निधिमिव हर्षनिदानम् ॥ ६॥
हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरामम् । कुरु मम वचनं सत्वररचनं पूरय मधुरिपुकामम् ॥ ७॥
श्रीजयदेवे कृतहरिसेवे भणति परमरमणीयम् । प्रमुदितहृदयं हरिमतिसदयं नमत सुकृतकमनीयम् ॥ ८॥
*

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की....

श्री लक्ष्मी-गणेश जी की पहली एवं एकमात्र उपलब्ध, संयुक्त आरती। 
दीपावली पर दोनों की संयुक्त पूजा में उपयोगार्थ सप्रेम भेंट। 
माँ लक्ष्मी एवं भगवान गणेश सभी पर कृपालु हों।  

- अरुण मिश्र.
















(पूर्वप्रकाशित)

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

नवरात्रि की मंगलकामनाएं

https://youtu.be/gMVumyq-naM




"या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
जय- जय भैरवि असुर भयाउनि

-विद्यापति

जय-जय भै‍रवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया

वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्‍द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा

सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका

घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता

                *

शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

मदालसा की लोरी



           
                                                                                                                                               मदालसा ने कहा, लाल मेरे ! 

(भावानुवाद)

-अरुण मिश्र 

मदालसा ने कहा, लाल मेरे !  
संसार-माया से मुक्त है तू। 
तू निष्कलुष, बुद्ध है, शुद्ध-आत्मा;
संसार है स्वप्न, तज मोह-निद्रा।।

पञ्चतत्वों की है, ये नहीं देह तेरी;
न तेरा कोई नाम, तू शुद्ध है तात।  
संज्ञा अभी जो मिली, वो भी कल्पित;
मेरे लाल ! फिर क्यों भला रो रहा है।।

या कि न रोता, रुदन-शब्द  तेरे, 
स्वयं जन्म लेते, तेरे पास आकर।  
तेरी इन्द्रियों के सकल दोष औ' गुण,  
भी हैं पञ्चभौतिक, ओ राजा के बेटे !!

अबल तत्त्व जैसे हैं अभिवृद्धि करते, 
सबल तत्त्व से पाके सहयोग जग में।
पा अन्न-जल , देह ही पुष्ट होती ;
आत्मा न बढ़ती न घटती है किञ्चित।।

ये देह कर्मों का फल है शुभाशुभ;
मद आदि से है, बँधा देह-चोला। 
अगर शीर्ण हो जाये, मत मोह करना,
तू आत्मा है, बँधा है न इससे ।।

कोई पिता, पुत्र कोई कहाता ; 
माता कोई और भार्या  है कोई। 
हैं पञ्चभूतों के ही रूप नाना;
कोई मेरा और कोई पराया ।।

दुःख मात्र ही, सारे भोगों का फल है;
पर मूढ़ उसको ही, सुख मानते हैं। 
दुःख वस्तुतः, भोग से प्राप्त सुख भी,
जो हैं नहीं मूढ़, वे जानते हैं ।। 

हँसी नारि की, अस्थियों का प्रदर्शन;
सुन्दर नयन-युग्म, मज्जा-कलुष हैं। 
सघन मांस की ग्रंथियाँ, कुच जो उभरे ;
नहीं नर्क क्या, तू है अनुरक्त जिससे ??   

चले रथ धरा पर, रथी किन्तु रथ में,
धरा को भला मोह क्या है रथी से। 
रहे आत्मा देह में पर जो ममता,
दिखे देह से तो यही मूढ़ता है ।।

                       *


मूल संस्कृत पाठ :

"शुद्धोसि बुद्धोसि निरँजनोऽसि
सँसारमाया परिवर्जितोऽसि
सँसारस्वप्नँ त्यज मोहनिद्राँ
मँदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्।।"

शुद्धोऽसि रे तात ! न तेऽस्ति नाम
कृतं हि ते कल्पनयाधुनैव ।
पञ्चात्मकं देहमिदं तवैतन्
नैवास्य त्वं रोदिषि कस्य हेतोः॥२५.११॥

न वा भवान् रोदिति वै स्वजन्मा
शब्दोऽयमासाद्य महीशशूनुम् ।
विकल्प्यमाना विविधा गुणास्ते
ऽगुणाश्च भौताः सकलेन्द्रियेषु॥२५.१२॥

भूतानि भूतैः परिदुर्बलानि
वृद्धिं समायान्ति यथेह पुंसः ।
अन्नाम्बुपानादिभिरेव कस्य
न तेऽस्ति वृद्धिर्न च तेऽस्ति हानिः॥२५.१३॥

त्वं कञ्चुके शीर्यमाणे निजेऽस्मिंस्
तस्मिंश्च देहे मूढतां मा व्रजेथाः ।
शुभाशुभैः कर्मभिर्देहमेतन्
मदादिमूढैः सञ्चुकस्तेऽपिनद्धः॥२५.१४॥

तातेति किञ्चित्तनयेति किञ्चिद्
अम्बेति किञ्चिद्दयितेति किञ्चित् ।
ममेति किञ्चिन्न ममेति किञ्चित्
त्वं भूतसङ्घं बहुमानयेथाः॥२५.१५॥

दुः खानि दुः खोपगमाय भोगान्
सुखाय जानाति विमूढचेताः ।
तान्येव दुः खानि पुनः सुखानि
जानात्यविद्वान सुविमूढयेताः॥२५.१६॥

हासोऽस्थिसन्दर्शनमक्षियुग्मम्
अत्युज्ज्वलं तर्जनमङ्गनायाः ।
कुचादिपीनं पिशितं घनं तत्
स्थानं रतेः किं नरकं न योषित्॥२५.१७॥

यानं क्षितौ यानगतञ्च देहं
देहेऽपि चान्यः पुरुषो निविष्टः ।
ममत्वबुद्धिर्न तथा यथा स्वे
देहेऽतिमात्रं बत मूढतैषा॥२५.१८॥

इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मदालसोपाख्याने पञ्चविंशोऽध्यायः

                                       *

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

ख़बरम रसीद इम शब ..अमीर ख़ुसरो


ख़बरम रसीद इम शब ...

- अमीर ख़ुसरो

भावानुवाद - अरुण मिश्र

Khabaram raseeda imshab
ke neggaar khuah-e aamad.
Sar-e man fidaa-e raah-e
ke sawaar khuah-e aamad.

है खबर मिली कि, इस शब,
महबूब यार आवे।
सर राह में बिछा दूँ,
जिस रह, सवार आवे।

Hama ahwaan-e sahra
sar-e khud nihada bar kaf,
Ba-umeed-e aanke rooz-e
ba shikar khuahi aamad.

सहरा के सारे आहू,
लिए हाथों में सर अपने
करें इंतज़ार, कब वो
करने शिकार आवे।

Kashish_e ki ishq daarad
naguzaradat badinsaa;
Ba-janazah gar nayai
ba-mazaar khuahi aamad.

ये इश्क़ की कशिश है, 
 लेने न चैन देगी  
जो जनाज़े में न आये 
तो जहाँ मज़ार, आवे

Ba labam raseeda jaanam
tu biya ke zinda maanam.
pas az-aan ke man na-maanam
ba chee kar khuahi aamad.


जां है लबों पे आयी 
 तू आ कि रहूं ज़िंदा 
 जब मैं ही न रहूँगा 
फिर कौन क़ार आवे

                                *
ख़्वाही आमद -आएगा / आहू - हरिण / क़ार - कार्य  (काम )


NUSRAT FATEH ALI KHAN - KHABRUM RASEEDU IM SHAB - PERSIAN QAWALI - PART 1

A beautiful late era persian qawali sung in Raga Kedara.
It's one of those songs where Nusrat was at his best.

https://youtu.be/RJsGer0yOlo

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

मैं और तू......अल्लामा इक़बाल


Main aur Tu | मैं और तू

अल्लामा इक़बाल 

Source:   http://www.allama.in/2015/07/main-aur-tu.html


न सलीक़ा मुझ में कलीम का, न क़रीना तुझ में ख़लील का
मैं हलाक-ए-जादू-ए-सामरी, तू क़तील-ए-शैवा-ए-आज़री।


मैं नवाए सोख़्ता दर गुलु, तू परीदा रंग, रमीदा बू
मैं हिकायत-ए-ग़म-ए-आरज़ू, तू हदीस-ए-मातम-ए-दिलबरी।


मेरा ऐश ग़म, मेरा शहद सम, मेरी बूद हमनफ़स-ए-अदम
तेरा दिल हरम, गरव-ए-अजम, तेरा दीं ख़रीदा-ए-काफ़िरी।


दम-ए-ज़िन्दगी, रम-ए-ज़िन्दगी, ग़म-ए-ज़िन्दगी, सम-ए-ज़िन्दगी
ग़म-ए-रम न कर, सम-ए-ग़म न खा क: यही है शान-ए-क़लन्दरी।


तेरी ख़ाक में है अगर शरर तो ख़्याल-ए-फ़क़्र-ओ-ग़ना न कर
क: जहाँ में नान-ए-शईर पर है मदार-ए-क़ुव्वत-ए-हैदरी।


कोई ऐसी तर्ज़-ए-तवाफ़ तू मुझे ऐ चराग़-ए-हरम बता
क: तेरे पतंग को फिर अता हो वही सरिश्त-ए-समन्दरी।


गिला-ए-जफ़ा-ए-वफ़ानुमा क: हरम को अहले-हरम से है
किसी बुतकदे में बयाँ करूँ तो कहे सनम भी 'हरि-हरि'।


न सतीज़ागाहे जहाँ नई, न हरीफ़े पंजाफ़िगन नए
वही फ़ितरत-ए-असदुल्लही वही मरहबी वही अन्तरी।


करम ऐ शहे अरब-ओ-अजम क: खड़े हैं मुन्तज़िर-ए-करम
वो गदा क: तूने अता किया है जिन्हें दिमाग़-ए-सिकन्दरी।
                                         *