https://youtu.be/jT-pnJ0CouQ
आस्तीं बर रुख़ कशीदी हम चो मक्कार आमदी
बाख़ुदी ख़ुद दर तमाशा सू-ए-बाज़ार आमदी
तूने अपने चेहरे पर आस्तीं का पर्दा डाला और हुलिया गैरों की तरह ज़ाहिर हुआ
अपनी ज़ात वो ऐतबार के साथ जलवा देखने के लिए ख़ुद बाज़ार की तरफ आया
दर बहारा गुल शुदी दर सेहने गुलज़ार आमदी
बादाजां बुल बुलशुदी दर बा नाला-ओ-ज़ार आमदी
मौसम-ए-बहार में फूलों का रूप धर कर ख़ुद चमन की ज़ीनत हुआ
और फिर बुलबुल बन कर खुद अपने हुस्न का आशिक़ हो कर नाला-ए-आशिकां बुलन्द किया
खोयेश तनरा जलवा कर्दी अन्दरी आईनाः
आइना इस्मे निहादी ख़ुद ब-इज़हार आमदी
क़ायनात के आईनों के अन्दर ख़ुद जल्वा अफ़रोज़ हुआ
आईना नाम रख दिया जब कि खुद इज़हार को आया
शोर-ए-मन्सूर अज़ कुजा-ओ-दार-ए- मन्सूर अज़ कुजा
ख़ुद ज़दी बाँग-ए-अनल हक़ ख़ुद ख़ुद सर-ए-दार आमदी
मंसूर का दावा क्या और सूली क्या
खुद ही नारा-ए-अनल हक़ बुलंद किया और खुद ही ज़ीनतदार हुआ
ग़ुफ़्त क़ुद्दूस-ए-फ़क़ीरी दर फ़ना-ओ-दर बक़ह
ख़ुद-ब-ख़ुद आज़ाद बूदी ख़ुद गिरफ़्तार आमदी
फ़ना और बक़ा के मरहले के एक फ़कीर 'कुद्दूस' ने कहा कि
तू खुद अपने आप आज़ाद था और खुद अपना गिरफ़्तार हुआ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें