सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

पहिरावैं मुद्रिका परस्पर.......




















प्रिय तरु एवं अविनाश के बरिच्छा / सगाई / गोद-भराई के
शुभ अवसर (१८ अक्टूबर ,२०१५ ) पर विशेष

-अरुण मिश्र


पहिरावैं मुद्रिका परस्पर.......

चौपाई

   विक्रम   सम्वत    बीस-बहत्तर। सानुकूल  तिथि,  वार,  नछत्तर।।
   सारदीय   नवरात्रि,    सुहावन। सुक्ल-पंचमी तिथि, अति पावन।।
   आंग्ल तिथी  अट्ठारह  सुभकर। दुइ  हजार   पन्द्रह,   अक्तूबर।।
   मध्य-दिवस, रवि वासर रुचिकर। बरसहिं आतप-कृपा  दिवाकर।।
   तीर  गोमती   के    अति   पावन। नगर  लखनऊ,  बसा सुहावन।।
   लछिमन  लीला-भूमि   मनोहर। तेहि नगरी एक थल पर सुन्दर।।
   विधि कै अस  मंगल विधान भय। दुइ परिवार भये कृत-निश्चय।।
   करहिं   सगाई   कन्या  औ’   वर। पहिरावैं     मुद्रिका     परस्पर।।


सोरठा

            सबके  हृदय  उछाह, सबके  मन   उपज्यो  सुमति।
           तरु-अविनाश बिवाह, होहि अवसि अरु शीघ्र अति।।


दोहा

             वर  कै   होय   बरीच्छा,  सुभ-साइत   अनुसार।
            गोद  भराई   वधू   कै   करहि,   अपर   परिवार।।


            होहि सदा यहि जुगल पर, प्रभु की कृपा  अपार।
           मंगलमय   सम्बन्ध   मा,  जुरैं    दुहू   परिवार।।

                                                  *
 
 

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