शनिवार, 31 अगस्त 2024

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो.../ शायर : जौन एलिया / गायन : तौसीफ़ अख्तर

https://youtu.be/LdwC_b8LC_k  


तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो 
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो 

मैं तुम्हारे ही दम से ज़िंदा हूँ 
मर ही जाऊँ जो तुम से फ़ुर्सत हो 

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू 
और उतनी ही बे-मुरव्वत हो 

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं 
या'नी ऐसा है जैसे फ़ुर्क़त हो 

तुम हो अंगड़ाई रंग-ओ-निकहत की 
कैसे अंगड़ाई से शिकायत हो 

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ 
तुम मिरी ज़िंदगी की आदत हो 

किस लिए देखती हो आईना 
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूब-सूरत हो 

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है 
तुम मिरी आख़री मोहब्बत हो

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

यह बिनती रघुबीर गुसांई.../ गोस्वामी तुलसीदास / गायन : शाल्मली जोशी

https://youtu.be/v8LqtKT_Tow  

यह बिनती रघुबीर गुसांई,
और आस बिस्वास भरोसो,हरो जीव जडताई।।

चहौं न कुमति सुगति संपति कछु,रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,
हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई।।

कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,
तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं।।

या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,
ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं।।

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए.../ मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : इक़बाल बानो

  https://youtu.be/t2AYXuc7_fE 

                                         

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए 
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए 

करता हूँ जम्अ' फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त को 
अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़्गाँ किए हुए 

फिर वज़'-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम 
बरसों हुए हैं चाक गरेबाँ किए हुए 

फिर गर्म-नाला-हा-ए-शरर-बार है नफ़स 
मुद्दत हुई है सैर-ए-चराग़ाँ किए हुए 

फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़ 
सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए 

फिर भर रहा हूँ ख़ामा-ए-मिज़्गाँ ब-ख़ून-ए-दिल 
साज़-ए-चमन तराज़ी-ए-दामाँ किए हुए 

बाहम-दिगर हुए हैं दिल ओ दीदा फिर रक़ीब 
नज़्ज़ारा ओ ख़याल का सामाँ किए हुए 

दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है 
पिंदार का सनम-कदा वीराँ किए हुए
 
फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब 
अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जाँ किए हुए 

दौड़े है फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल 
सद-गुलसिताँ निगाह का सामाँ किए हुए 

फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार खोलना 
जाँ नज़्र-ए-दिल-फ़रेबी-ए-उनवाँ किए हुए 

माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस 
ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए 

चाहे है फिर किसी को मुक़ाबिल में आरज़ू 
सुरमे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़्गाँ किए हुए 

इक नौ-बहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह 
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ किए हुए 

फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें 
सर ज़ेर-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबाँ किए हुए 

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन 
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए 

'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से 
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए



पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब

सोमवार, 26 अगस्त 2024

कृष्ण प्राकट्य.../ विप्रेन्द्र झा माधव / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/zdvv7-ArzMI  

कृष्ण प्राकट्य

भए प्रगट कृपाला जग प्रतिपाला गोपाला ब्रज लाला ,

छवि अनुपम धारी कौस्तुभ हारी कोमल नयन विशाला ।

वसुदेव दुखारी अति सुखकारी देवकी त्रास निवारी ।

देवारि निकंदन भव भय भंजन संतन ऋषि हितकारी ।

वैदूर्य किरीटं कटि पटपीतं

देह मेघ सम श्यामा ।

श्रीवत्स विभूषित कुंडल शोभित कुंचित केश ललामा ।

भुज कंकण सुंदर चक्र गदाधर शंख कमल कर सोहे ।

मंदस्मित आनन मृगमद चानन

बदन दीप्ति मन मोहे ।

बंदी गृह चमके सौरभ गमके 

पावन भयो समीरा ।

पितु मातु विचारो प्रभुहि पधारो

देखि भयो मन धीरा ।

ऋषि मुनि बहु हर्षित प्रकृति गर्वित ‌, मुदित सिद्ध गंधर्वा ।

सुर नारिन नाचत प्रभु गुण बांचत

ब्रज आयो दुख हरवा ।

तरुवर फल पुष्पित लता सुशोभित, सर सरसिज परिभूषित

खग मृग अति प्रमुदित धरणि प्रफुल्लित, गगन मेघ उत्कर्षित ।

देवकी स्तुति गावत हरि को सुनावत , पति वसुदेव समेता ।

प्रभु आशिष दीन्हा भय हरिलीन्हा

प्रहरी भयो अचेता ।

पितु सुतहिं उठायो गोकुल जायो

यशोदा गृह पहुचायो,

हरि माया रूपा देवि स्वरूपा

नंद सुता धरि लायो।

दोहा:--

वासुदेव के जन्म का 

जो मुख वर्णन गात ।

माधव बड़भागी मनुज

माधव चरण समात ।

  -विप्रेन्द्र झा माधव  (आचार्य माधवानंद)

रविवार, 25 अगस्त 2024

देखो माई ये बडभागी मोर.../ सूरदास / स्वर : श्री हित अम्बरीष जी

 https://youtu.be/KlkdApcofFk 


देखो माई ये बडभागी मोर।।

जिनकी पंख को मुकुट बनत है, 
शिर धरें नंदकिशोर॥१॥

ये बडभागी नंद यशोदा, 
पुन्य कीये भरझोर।
वृंदावन हम क्यों न भई हैं 
लागत पग की ओर॥२॥

ब्रह्मदिक सनकादिक नारद, 
ठाडे हैं कर जोर।
सूरदास संतन को सर्वस्व 
देखियत माखन चोर॥३॥

गुरुवार, 22 अगस्त 2024

आए हैं समझाने लोग.../ कँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' / गायन : आकांक्षा ग्रोवर

https://youtu.be/HzDJ4SgbU-w  


आए हैं समझाने लोग 
हैं कितने दीवाने लोग

वक़्त पे काम नहीं आते हैं 
ये जाने-पहचाने लोग 

जैसे हम इन में पीते हैं 
लाए हैं पैमाने लोग 

फ़र्ज़ानों से क्या बन आए 
हम तो हैं दीवाने लोग 

अब जब मुझ को होश नहीं है 
आए हैं समझाने लोग 

दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता 
क्यूँ जाते मयख़ाने लोग 

जान के सब कुछ कुछ भी न जानें 
हैं कितने अनजाने लोग 

जीना पहले ही उलझन था 
और लगे उलझाने लोग

रविवार, 18 अगस्त 2024

श्री गौरीशाष्टकम .../ श्री चिन्तामणि विरचितं / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/Kr8IfYBcZlU  

॥ श्री गौरीशाष्टकम ॥

भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते।
जलभवदुस्तरजलधिसुतरणं
ध्येयं चित्ते शिवहरचरणम्।
अन्योपायं न हि न हि सत्यं
गेयं शङ्कर शङ्कर नित्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥१॥

दारापत्यं क्षेत्रं वित्तं
देहं गेहं सर्वमनित्यम्।
इति परिभावय सर्वमसारं
गर्भविकृत्या स्वप्नविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥२॥

मलवैचित्ये पुनरावृत्ति:
पुनरपि जननीजठरोत्पत्ति:।
पुनरप्याशाकुलितं जठरं किं
नहि मुञ्चसि कथयेश्चित्तम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥३॥

मायाकल्पितमैन्द्रं जालं न
हि तत्सत्यं दृष्टिविकारम्।
ज्ञाते तत्त्वे सर्वमसारं मा
कुरु मा कुरु विषयविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥४॥

रज्जौ सर्पभ्रमणा-
रोपस्तद्वद्ब्रह्मणि जगदारोप:।
मिथ्यामायामोहविकारं
मनसि विचारय बारम्बारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥५॥

अध्वरकोटीगङ्गागमनं कुरुते
योगं चेन्द्रियदमनम्।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन न
भवति मुक्तो जन्मशतेन।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥६॥

सोऽहं हंसो ब्रह्मैवाहं
शुद्धानन्दस्तत्त्वपरोऽहम्।
अद्वैतोऽहं सङ्गविहीने
चेन्द्रिय आत्मनि निखिले लीने।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥७

शङ्करकिंङ्कर मा कुरु चिन्तां
चिंतामणिना विरचितमेतत्।
य: सद्भक्त्या पठति हि नित्यं
ब्रह्मणि लीनो भवति हि सत्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशं
गौरीशं भज मन्दमते॥८॥

॥ इति श्रीचिन्तामणिविरचितं गौरीशाष्टकं सम्पूर्णम्॥

तू छुट्टी ले के आ जा बालमा.../ गायन : साइमा ज़हां

https://youtu.be/eHWg425BX8k   

आये मौसम रंगीले सुहाने 
आये मौसम रंगीले सुहाने 
जिया नही माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

जब बहती नदिया शोर करे 
जब बहती नदिया शोर करे 
मेरा दिल मिलने को ज़ोर करे 
मेरा दिल मिलने को ज़ोर करे 
याद आयें 
याद आयें ख़ुशी के ज़माने 
जिया नहीं माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 


जब आयें पंछी शाम ढले 
जब आयें पंछी शाम ढले
मेरे दिल में तेरी याद चले 
मेरे दिल में तेरी याद चले 
कोई गाये 
कोई गाये अनोखे तराने 
जिया नहीं माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 


कहीं फूल को भौंरा चूम गया 
कहीं फूल को भौंरा चूम गया 
मेरा दिल मस्ती में झूम गया 
मेरा दिल मस्ती में झूम गया 
कोई मेरी 
कोई मेरी लगी को न जाने 
जिया नहीं माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के.../ श्री सुमित्रानंदन पंत

 https://youtu.be/Se26p7VGxqg


झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के।
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।  

ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आंधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर चर
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।

पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल,
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल।
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूंदें झलमल।

नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल,
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल
हंसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?

दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्यांउ म्यांउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण!
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।

वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन।
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन।
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।

रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूंदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!

शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है.../ हकीम नासिर / गायन : आबिदा परवीन

 https://youtu.be/ZcT2pN0vACg    


जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है 
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है 

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी 
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है 

पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो 
मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है 

अब मिरी दीद की दुनिया भी तमाशाई है 
तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है 

पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर' 
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है

रविवार, 11 अगस्त 2024

मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया.../ दाग़ देहलवी / गायन : शैला हट्टंगणी

https://youtu.be/cXifUnXxhBw 


मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया
वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया

दी मुअज्जिन ने शब-ए-वस्ल अज़ान पिछली रात
हाए कम-बख्त के किस वक्त ख़ुदा याद आया

लीजिए सुनिए अब अफ़साना-ए- फुर्कत मुझ से
आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया

आप की महिफ़ल में सभी कुछ है मगर 'दाग़' नहीं
मुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहोत याद आया

रात भर शोर रहा है तेरे हमसाये में
किसके अरमान भरे दिल को ख़ुदा याद आया

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

जाग मुसाफ़िर.../ कबीर / प्रस्तुति : फ़रीद अयाज़ क़व्वाल

 https://youtu.be/u4wi7nOGV4o    


सजन सकारे जायेंगे और नैन मरेंगे रोय।  
विधना ऐसी रैन कर जाकी भोर कबहुँ न होय।।

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,  
अब रैन कहाँ जो सोवत है। 
जो सोवत है सो खोवत है,
जो जागत है सो पावत है। 

गुरुवार, 8 अगस्त 2024

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम दराज़.../ परवीन शाक़िर / प्रस्तुति : डॉ. सोमा घोष

 https://youtu.be/t_QBbt0xyZ0 

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम दराज़  
 सोंचती थी के वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मग़र उस कूचा-ए-रंगों-बू में
रोज की तरह से वो आज भी आया होगा
और जब उस ने वहाँ मुझको न पाया होगा
आप को इल्म है वो आज नहीं आयीं हैं?
क्यों नहीं आईं वो? क्या बात हुई है आखिर?
खुद से इस बात पर सौ बार वो उलझा होगा
कल वो आएगी तो मैं उस से नहीं बोलूँगा
आप ही आप कई बार वो रूठा होगा

वो नहीं तो बुलंदी का सफ़र कितना कठिन
सीढियां चढ़ते हुए उस ने ये सोंचा होगा
राहदारी में हरे लॉन में फूलों के करीब
उसने हर सिम्त मुझे आन के ढूँढा होगा
नाम भूले से जो मेरा कहीं आया होगा
गैर-महसूस तरीके से वो चौंका होगा
एक हीं जुमले को कई बार सुनाया होगा
बात करते हुए सौ बार वो भूला होगा
ये जो लड़की नयी आई है कहीं वो तो नहीं
उस ने हर चेहरा यही सोंच के देखा होगा
जाने-महफ़िल है मग़र आज फ़क़त मेरे बगैर
हाय किस दर्ज़ा वो बज़्म में तनहा होगा
कभी सन्नाटों से वहशत जो हुई होगी उसे
उसने बेसाख्ता फिर मुझको पुकारा होगा
चलते-चलते कोई मानूस सी आहट पा कर
दोस्तों को भी किसी उज्र से रोका होगा
याद करके मुझे नम हो गयी होंगी पलकें
आँख में पड़ गया कुछ कह के ये टाला होगा
और घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह
हर सतर में मेरा चेहरा उभर आया होगा
जब मिली होगी उसे मेरी अलालत की खबर
उस ने आहिस्ता से दीवार को थामा होगा
सोंच कर ये के बहल जाए परेशानी-ए-दिल
यूहीं बेवजह किसी शख्स को रोका होगा

इत्तेफाक़न उस शाम मुझे मेरी दोस्त मिली
मैंने पूछा के सुनो! आये थे वो? कैसे थे?
मुझको पूछा था? ढूँढा था चारों ज़ानिब?
उस ने इक लम्हे को देखा मुझे और फिर हँस दी
इस हँसी में वो तल्खी थी के इस से आगे
क्या कहा उसने मुझे याद नहीं है लेकिन
इतना मालूम है कि खाबों का भरम टूट गया

सोमवार, 5 अगस्त 2024

शिव बम बम बम.../ रचना : भिखारी ठाकुर / गायन : चन्दन तिवारी

 https://youtu.be/JPqmNw6xVts  

प्रसंग

शिव-विवाह में शिव की बारात में 
द्वार-पूजा के पूर्व का दृश्य है, जब 
पार्वती के द्वार पर नगर के पुरवासी 
दूल्हे को देखने के लिए भारी संख्या 
में आ रहे हैं।

हरदम बोलऽ शिव, बम-बम बम-बम॥टेक॥

कर त्रिशुल बँसहा पर शंकर। 
डमरु बाजत बाटे, डम-डम डम-डम॥ हरदम...

मुख में पान न भांग चबावत। 
दसन बिराजत बा चम-चम चम-चम॥ हरदम...

पुरबासी निरखन बर लागे। 
नारी-पुरुष सब खम-खम खम-खम॥ हरदम...

नाई ‘भिखारी’ कहब कब तक ले। 
जब तक रही तन दम-दम दम-दम॥ हरदम...

रविवार, 4 अगस्त 2024

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ / सदा अम्बालवी / गायन : राधिका चोपड़ा

https://youtu.be/GfEfplHXJ2s  


ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ
तू तो ख़ुद ही इक ग़ज़ल है तुझे क्या ग़ज़ल सुनाएँ

तुझे एक बार देखा तो ये दिल ने दी दु'आएँ
तुझे बार-बार देखें तुझे देखते ही जाएँ

ये सियाही क्या उतारे छवी रूप की तुम्हारे
चलो इन्द्र से धनुष के सभी रंग माँग लाएँ

तिरे लब खुलें सनम जब तो कली को लाज आए
उड़े ज़ुल्फ़ जब हवा में तो घटाएँ सर झुकाएँ

तू सँवार ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ ये दो नैन रख के आगे
कि मजाल क्या हमारी तुझे आइना दिखाएँ

मिरे बोल बे-नवा हैं तिरे साज़ बे-सदा हैं
चलो सुर में सुर मिला के नई बंदिशें बनाएँ 

शनिवार, 3 अगस्त 2024

चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की.../ आग़ा हश्र काश्मीरी / गायन : बीनिश परवेज़

 https://youtu.be/HU1bNcP9jEs.  



चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की
ख़ुश-बू उड़ा के लाई है गेसू-ए-यार की

अल्लाह रक्खे उस का सलामत ग़ुरूर-ए-हुस्न
आँखों को जिस ने दी है सज़ा इंतिज़ार की

गुलशन में देख कर मिरे मस्त-ए-शबाब को
शर्माई जा रही है जवानी बहार की

ऐ मेरे दिल के चैन मिरे दिल की रौशनी
आ और सुब्ह कर दे शब-ए-इंतिज़ार की

जुरअत तो देखिएगा नसीम-ए-बहार की
ये भी बलाएँ लेने लगी ज़ुल्फ़-ए-यार की

ऐ 'हश्र' देखना तो ये है चौदहवीं का चाँद
या आसमाँ के हाथ में तस्वीर यार की