गुरुवार, 8 अगस्त 2024

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम दराज़.../ परवीन शाक़िर / प्रस्तुति : डॉ. सोमा घोष

 https://youtu.be/t_QBbt0xyZ0 

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम दराज़  
 सोंचती थी के वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मग़र उस कूचा-ए-रंगों-बू में
रोज की तरह से वो आज भी आया होगा
और जब उस ने वहाँ मुझको न पाया होगा
आप को इल्म है वो आज नहीं आयीं हैं?
क्यों नहीं आईं वो? क्या बात हुई है आखिर?
खुद से इस बात पर सौ बार वो उलझा होगा
कल वो आएगी तो मैं उस से नहीं बोलूँगा
आप ही आप कई बार वो रूठा होगा

वो नहीं तो बुलंदी का सफ़र कितना कठिन
सीढियां चढ़ते हुए उस ने ये सोंचा होगा
राहदारी में हरे लॉन में फूलों के करीब
उसने हर सिम्त मुझे आन के ढूँढा होगा
नाम भूले से जो मेरा कहीं आया होगा
गैर-महसूस तरीके से वो चौंका होगा
एक हीं जुमले को कई बार सुनाया होगा
बात करते हुए सौ बार वो भूला होगा
ये जो लड़की नयी आई है कहीं वो तो नहीं
उस ने हर चेहरा यही सोंच के देखा होगा
जाने-महफ़िल है मग़र आज फ़क़त मेरे बगैर
हाय किस दर्ज़ा वो बज़्म में तनहा होगा
कभी सन्नाटों से वहशत जो हुई होगी उसे
उसने बेसाख्ता फिर मुझको पुकारा होगा
चलते-चलते कोई मानूस सी आहट पा कर
दोस्तों को भी किसी उज्र से रोका होगा
याद करके मुझे नम हो गयी होंगी पलकें
आँख में पड़ गया कुछ कह के ये टाला होगा
और घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह
हर सतर में मेरा चेहरा उभर आया होगा
जब मिली होगी उसे मेरी अलालत की खबर
उस ने आहिस्ता से दीवार को थामा होगा
सोंच कर ये के बहल जाए परेशानी-ए-दिल
यूहीं बेवजह किसी शख्स को रोका होगा

इत्तेफाक़न उस शाम मुझे मेरी दोस्त मिली
मैंने पूछा के सुनो! आये थे वो? कैसे थे?
मुझको पूछा था? ढूँढा था चारों ज़ानिब?
उस ने इक लम्हे को देखा मुझे और फिर हँस दी
इस हँसी में वो तल्खी थी के इस से आगे
क्या कहा उसने मुझे याद नहीं है लेकिन
इतना मालूम है कि खाबों का भरम टूट गया

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