गुरुवार, 29 मई 2025

चण्डिकाष्टकम्.../ श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं / स्वर : पण्डित कमल दीक्षित

https://youtu.be/Up_ovBifNkA   

चण्डिकाष्टकम् 

सहस्रचन्द्रनित्दकातिकान्त-चन्द्रिकाचयै-
दिशोऽभिपूरयद् विदूरयद् दुराग्रहं कलेः ।
कृतामलाऽवलाकलेवरं वरं भजामहे
महेशमानसाश्रयन्वहो महो महोदयम् ॥ १॥

विशाल-शैलकन्दरान्तराल-वासशालिनीं
त्रिलोकपालिनीं कपालिनी मनोरमामिमाम् ।
उमामुपासितां सुरैरूपास्महे महेश्वरीं
परां गणेश्वरप्रसू नगेश्वरस्य नन्दिनीम् ॥ २॥

अये महेशि! ते महेन्द्रमुख्यनिर्जराः समे
समानयन्ति मूर्द्धरागत परागमंघ्रिजम् ।
महाविरागिशंकराऽनुरागिणीं नुरागिणी
स्मरामि चेतसाऽतसीमुमामवाससं नुताम् ॥ ३॥

भजेऽमरांगनाकरोच्छलत्सुचाम रोच्चलन्
निचोल-लोलकुन्तलां स्वलोक-शोक-नाशिनीम् ।
अदभ्र-सम्भृतातिसम्भ्रम-प्रभूत-विभ्रम-
प्रवृत-ताण्डव-प्रकाण्ड-पण्डितीकृतेश्वराम् ॥ ४॥

अपीह पामरं विधाय चामरं तथाऽमरं
नुपामरं परेशिदृग्-विभाविता-वितत्रिके ।
प्रवर्तते प्रतोष-रोष-खेलन तव स्वदोष-
मोषहेतवे समृद्धिमेलनं पदन्नुमः ॥ ५॥

भभूव्-भभव्-भभव्-भभाभितो-विभासि भास्वर-
प्रभाभर-प्रभासिताग-गह्वराधिभासिनीम् ।
मिलत्तर-ज्वलत्तरोद्वलत्तर-क्षपाकर
प्रमूत-भाभर-प्रभासि-भालपट्टिकां भजे ॥ ६॥

कपोतकम्बु-काम्यकण्ठ-कण्ठयकंकणांगदा-
दिकान्त-काश्चिकाश्चितां कपालिकामिनीमहम् ।
वरांघ्रिनूपुरध्वनि-प्रवृत्तिसम्भवद् विशेष-
काव्यकल्पकौशलां कपालकुण्डलां भजे ॥ ७॥

भवाभय-प्रभावितद्भवोत्तरप्रभावि भव्य
भूमिभूतिभावन प्रभूतिभावुकं भवे ।
भवानि नेति ते भवानि! पादपंकजं भजे
भवन्ति तत्र शत्रुवो न यत्र तद्विभावनम् ॥ ८॥

दुर्गाग्रतोऽतिगरिमप्रभवां भवान्या
भव्यामिमां स्तुतिमुमापतिना प्रणीताम् ।
यः श्रावयेत् सपुरूहूतपुराधिपत्य
भाग्यं लभेत रिपवश्च तृणानि तस्य ॥ ९॥

रामाष्टांक शशांकेऽब्देऽष्टम्यां शुक्लाश्विने गुरौ ।
शाक्तश्रीजगदानन्दशर्मण्युपहृता स्तुतिः ॥ १०॥

॥ इति कविपत्युपनामक-श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं चण्डिकाष्टकं
सम्पूर्णम् ॥

शुक्रवार, 23 मई 2025

तजौ रे मन, हरि विमुखन को संग.../ श्री सूरदास जी / सूर सागर / गायन : पुरुषोत्तम दास जलोटा

https://youtu.be/s2K0sDGqe8U  


तजौ रे मन...
  हरि विमुखन को संग।
जिनके संग कुमति उपजत है, 
    परत भजन में भंग॥ [१]

कहा होत पय पान कराए विष, 
        नहिं तजत भुजंग।
कागहि कहा कपूर चुगाये,
      स्वान न्हवाऐ गंग॥ [२]

खर को कहा अरगजा लेपन,
           मरकट भूपन अंग।
गज को कहा सरित अन्हवाऐ, 
      बहुरि धरै वह ढंग॥ [३]

पाहन पतित बान नहिं बेधत,
           रीतो करौ निषंग।
'सूरदास' कारी काँमरि पे 
     चढ़त न दूजौ रंग॥ [४]

भावार्थ :

हे मेरे मन ! जो जीव हरि भक्ति से विमुख हैं, उन प्राणियों का संग न कर। उनकी संगति के माध्यम से तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी क्योंकि वे तेरी भक्ति में रुकावट पैदा करते हैं, उनके संग से क्या लाभ? [१]

आप चाहे कितना ही दूध साँप को पिला दो, वो ज़हर बनाना बंद नहीं करेगा एवं आप चाहे कितना ही कपूर कौवे को खिला दो वह सफ़ेद नहीं होगा, कुत्ता (स्वान) कितना ही गंगा में नहा ले वह गन्दगी में रहना नहीं छोड़ता। [२]

आप एक गधे को कितना ही चन्दन का लेप लगा लो वह मिट्टी में बैठना नहीं छोड़ता, मरकट (बन्दर) को कितने ही महंगे आभूषण मिल जाए वह उनको तोड़ देगा। एक हाथी द्वारा नदी में स्नान करने के बाद भी वह रेत खुद पर छिड़कता है। [३]

भले ही आप अपने पूरे तरकश के तीर किसी चट्टान पर चला दें, चट्टान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। श्री सूरदास जी कहते हैं कि "एक काले कंबल दूसरे रंग में रंगा नहीं जा सकता (अर्थात् जिस जीव ने ठान ही लिया है कि उसे कुसंग ही करना है तो उसे कोई नहीं बदल सकता इसलिए ऐसे विषयी लोगों का संग त्यागना ही उचित है।

बुधवार, 14 मई 2025

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते.../ शायर : हैदर अली आतिश / गायन : उस्ताद अमानत अली

https://youtu.be/AJeltGldEFU   

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते


पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते


हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते


मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते


न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते

रविवार, 4 मई 2025

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या.../ सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/EXHMj42N7BQ  

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या


जो बिछड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में हमन को इंतिज़ारी क्या


न पल बिछ्ड़ें पिया हम से न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बे-क़रारी क्या


'कबीरा' इश्क़ का माता दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है हमन सर बोझ भारी क्या

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल.../ महाकवि विद्यापति / गायन : सृष्टि एवं अनुष्का

https://youtu.be/bS4l4jhuIkU  


आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, 
दुःख ककरो नहिं देल

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, 
दुःख ककरो नहिं देल

एही जोगिया के भाँग भुलैलक, 
धतुर खोआई धन लेल। 

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, 
जन भरी के नहिं जान 
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, 
रतियक सन नहिं कान 

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत, 
अभरन अपने रूद्रक माल
अभरन अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, 
अनका लै जंजाल 

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, 
वाहि देवा नहिं थोर 
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइन 
इहो थिका दिगम्बर मोर

शनिवार, 3 मई 2025

राम गुन बेलड़ी रे.../ भजन / रचना : सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/9sC2NisiCV8  


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


vine(creeper) made of qualities of Ram 
is known to Avdhoo(saint) Goraknath.  

नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥


It neither has form nor shadow, 
it grows without water(Maya). 

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



बेलड़िया द्वे अणीं 
पहूँती गगन पहूँती सैली।


The vine has two ends(Ida and pingala ),
 it has reached by itself to the sky.

सहज बेलि जल फूलण लागी,
डाली कूपल मेल्ही॥

When this vine by its own nature
(unforced,effortless smadhi) blossomed, 
then new braches and shoots come out.

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


मन कुंजर जाइ बाड़ा बिलब्या, 
सतगुर बाही बेली।


When elephant nature mind rests
 in this garden of this vine, Satguru helps this vine grow further.

पंच सखी मिसि पवन पयप्या, 
बाड़ी पाणी मेल्ही॥

Now five senses help life force 
further to remove water(Maya).


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



काटत बेली कूपले मेल्हीं,
सींचताड़ी कुमिलाँणों।

This vine grows further when one cuts oneself further from worldliness, if one enjoys worldly cravings
the this vine become lifeless.

कहै कबीर ते बिरला जोगी, 
सहज निरंतर जाँणीं।।


Sayes Kabir he is a rare yogi, 
who can understand this effortless 
eternal yoga.