रविवार, 4 मई 2025

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल.../ महाकवि विद्यापति / गायन : सृष्टि एवं अनुष्का

https://youtu.be/bS4l4jhuIkU  


आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, 
दुःख ककरो नहिं देल

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, 
दुःख ककरो नहिं देल

एही जोगिया के भाँग भुलैलक, 
धतुर खोआई धन लेल। 

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, 
जन भरी के नहिं जान 
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, 
रतियक सन नहिं कान 

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत, 
अभरन अपने रूद्रक माल
अभरन अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, 
अनका लै जंजाल 

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, 
वाहि देवा नहिं थोर 
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइन 
इहो थिका दिगम्बर मोर

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