https://youtu.be/_G5lsK8hEiA
निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा
मूल-कमल दृढ़-आसन बांधूं जी
उल्टी पवन चढ़ाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
मन-ममता को थिर कर लाऊं जी
पांचों तत्व मिलाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
इंगला-पिंगला-सुखमन नाड़ी
त्रिवेणी पे हां नहाऊंगा
निर्भय-निर्गुण ।।
पांच-पचीसों पकड़ मंगाऊं-जी
एक ही डोर लगाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
शून्य-शिखर पर अनहद बाजे जी
राग छत्तीस सुनाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।
कहत कबीरा सुनो भई साधो जी
जीत निशान घुराऊंगा ।
निर्भय-निर्गुण ।।
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