मंगलवार, 24 मई 2011

ज्येष्ठ के प्रथम बड़ा मंगल पर विशेष

देह कुंदन( भाल चन्दन( केसरी नंदन प्रभो ---

































है आसरा हनुमान जी---



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जैसे दुख  श्री जानकी जी का  हरा  हनुमान जी।
दुख   हमारे  भी  हरो]  है  आसरा  हनुमान जी।।

देह   कुंदन]  भाल   चंदन]  केसरी  नंदन  प्रभो।
ध्यान इस छवि का सदा हमने धरा हनुमान जी।।

लॉघ  सागर]  ले  उड़े]  संजीवनी  परबत सहज।
क्रोध]  कौतुक में  दिया लंका जरा  हनुमान जी।।

मुद्रिका दी]  वन  उजारा  और  अक्षय को हना।
शक्ति का  आभास पा]  रावन डरा  हनुमान जी।।

राम के तुम काम आये] काम क्या तुमको कठिन। 
कौन   संकट]  ना   तेरे   टारे  टरा  हनुमान जी।।

चरणकमलों में तिरे निसिदिन ^अरुण* का मन रमे।
हो  हृदय  में  भक्ति का  सागर भरा   हनुमान जी।। 





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