( टिप्पणी : प्रिय पुत्र अंकुर के शुभ-विवाह के अवसर पर वर्ष २००६ में लिखी
इस रचना को स्वर दिया है सुश्री पद्मा गिडवानी जी ने एवं संगीत से सजाया है
श्री केवल कुमार ने | इतने सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए, मैं उन दोनों का
आभारी हूँ| - अरुण मिश्र. )
दुलहा सुघर अंकुर कुवँर...
-अरुण मिश्र
दुलहा सुघर अंकुर कुवँर, दुलहिन बनीं रुचिरा ऋचा।
सब भ्रात-भगिनि, सखी-सखा, मन मुदित मंगल गावहीं।
पितु-मातु हर्षित , नात-बॉत समेत अति सुख पावहीं।।
पितु अरुण मिश्र प्रसन्न-चित्, मन मगन मातु शकुन्तला।
प्रिय भगिनि तरु-श्री, फिरति उमगति मनहुँ चपला की कला।।
सुन्दर सुअवसर जानि अति, सब स्वजन-परिजन हरषहीं।
पुरखन सहित, कुलदेवता संग, देव आशिष बरसहीं।।
दादी सुमातु प्रियम्वदा, बहु द्रव्य न्यौछावर करैं।।
काका अमर, काकी सहित, श्वेताभिषेक, समृद्धि संग।
मन मुदित ताऊ केशरी, सबके उरहिं उछरै उमंग।।
संध्या, उषा , प्रतिमा बुआ, मौसी सुमन, शशि औ किरन।
चारुल, हिना, तृप्ति, तृषा , सोनाक्षी बहिनें मगन।।
कश्यप, कुणाल, मृणाल, अंकुश, सुयश, कौशिक सजि रहे।
अंकित, ऋषभ, सब भ्रात नाचहिं, ढोल-ताशे बजि रहे।।
फूफा उपाध्या औ तिवारी, दूबे अरु ओझा भले।
मौसा मिसिर, पाण्डे, त्रिपाठी, सजि बरातिन्ह महुँ चले।।
नाना श्री ईश्वर शरण , आनन्द मामा सजि-संवर। मामी औ नानी साजि वर, ब्याहन चलीं अंकुर कुवँर।।
सबै सराहति भाग्य निज, पुण्य सुअवसरु आजु।
विघ्न-हरन, करिवर-वदन, करहु पूर्ण सब काजु।।
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