पर्यावरण वन्दना
-अरुण मिश्र
वन्दना करिये धरा की;
धरा के पर्यावरण की।।
झर रहे निर्झर सुरीले,
और नदियॉ बहें कल-कल।
ताल, पोखर, झील, सागर,
हर तरफ है, नीर निर्मल।।
चर-अचर जिसमें सुरक्षित,
स्नेहमय उस आवरण की।।
मन्द, मन्थर पवन शीतल;
ऑधियों का तीव्रतर स्वर।
सर्वव्यापी वायु पर ही,
प्राणियों की सॉस निर्भर।।
जीव-जग-जीवनप्रदायिनि-
प्रकृति के, शुभ आचरण की।।
अन्न के भण्डार दे भर,
भूमि उर्वर, शस्य-श्यामल।
भूख सबकी मेटने को-
वृक्ष, फलते हैं मधुर फल।।
मॉ धरा की गोद के,
इस मोदमय वातावरण की।।
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परम आदरणीय अरुण मिश्र जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
प्रणाम !
झर रहे निर्झर सुरीले,
और नदियॉ बहें कल-कल।
ताल, पोखर, झील, सागर,
हर तरफ है, नीर निर्मल।।
चर-अचर जिसमें सुरक्षित,
स्नेहमय उस आवरण की।।
वन्दना करिये धरा की;
धरा के पर्यावरण की।।
आहाऽऽह …! कितनी प्रखर लेखनी है आपकी !
आपने हर विषय पर हर विधा में ; अनेक भाषाओं में काव्य सृजन किया है , और जिस विषय पर , जिस विधा में लिखा कमाल लिखा !
… और दंभ छू भी नहीं गया आपको … प्रणाम है !
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सादर
हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रिय राजेंद्र जी, उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभारी हूँ| स्नेह बनाये रखियेगा|लिंक की प्रतीक्षा करूंगा|
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
प्रिय यशवंत माथुर जी एवं सुश्री विभा रानी श्रीवास्तव जी
जवाब देंहटाएंआप दोनों का आभार|
शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
bhaut sundar rachana....!!
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