शक्ति-रूपा अग्नि! तुझमें जायें सब कल्मष-कलुष जल......
-अरुण मिश्र
अग्निमय विस्फोट से,
की ब्रह्म ने है, सृष्टि रचना।
अग्निमय आलोक में ही,
देखती है, दृष्टि रचना॥
गहन-तम में ज्योति का है,
संचरण भी अग्निकर्मा।
और जिससे जग प्रकाशित,
वह किरण भी अग्निधर्मा॥
अग्निमय आकाश-मंडल,
अग्नि से निर्मित धरा है।
अग्नि से नक्षत्र चक्रित,
अग्नि से गति है, त्वरा है॥
अग्नि से सब लोक भासित,
अग्नि से संसार सारा।
देवता तक हवि पहुँचती,
अग्नि का ही ले सहारा॥
है धरा के कुक्षि में, ज्वाला-मुखी की ज्वाल चंचल।
अतल सागर के तलों में,
तप्त बड़वानल, रहा जल॥
सजल मेघों के हृदय में,
बन चपल चपला, चमकती।
शुष्क कानन-काष्ठ में है,
जड-शिला-घर्षित दहकती॥
अग्नि से ऊष्मा ग्रहण कर,
जगत के सब जीव उपजे।
ज्योति का कर संक्रमण,
विधि ने सचेतन प्राण सिरजे॥
ताप से जल-वायु -मय,
ऋतु -चक्र होता है नियंत्रित।
मेघ झरते, वन हुलसते ,
अन्न पकते, सर्व-जन-हित॥
अग्नि सर्जक,अग्नि पोषक,
अग्नि दाहक तत्व लौकिक।
अग्नि रक्षक,अग्नि भासक,
अग्नि तमनाशक अलौकिक॥
अग्नि से उत्पत्ति सबकी,
अग्नि में होते सभी लय।
अग्नि अविनाशी, अमर है,
अग्नि ऊर्जा-श्रोत अक्षय॥
अग्नि आभा, अग्नि ऊर्जा,
अग्नि ऊष्मा-ताप, जग में।
अन्न-जल-फल-पुष्प-दात्री ,
मेटती हर पाप, जग में॥
अग्नि से हैं यज्ञ धारित,
यज्ञ से है, लोक-मंगल।
शक्ति-रूपा अग्नि! तुझमें,
जायें सब कल्मष-कलुष जल॥
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