१०० वर्ष तक के बच्चों के लिये मीठे जाइकू.....
(टिप्पणी : कुछ अति प्रबुद्ध मित्रों हेतु वर्ष 2004 में रचे गए मीठे जाइकू का आप भी आनन्द लें।)
- अरुण मिश्र.
जाइकू संरचना :
1. दुनिया एक जलेबी।
भीतर रस से सनी, पगी,
बाहर कुरकुरी, फरेबी॥
(अन्तर्कथ्य : कर्म-फल-आसक्ति)
(अन्तर्कथ्य : मानव मन)
4. बर्फी खोये केर।
बदले रूप, दूध-चीनी भये,
अस्सी रुपये सेर॥
(अन्तर्कथ्य : रूप-गुण परिवर्तन)
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(टिप्पणी : कुछ अति प्रबुद्ध मित्रों हेतु वर्ष 2004 में रचे गए मीठे जाइकू का आप भी आनन्द लें।)
- अरुण मिश्र.
जाइकू संरचना :
- तीन पंक्तियॉ
- ३,५,३ का क्रमशः पंक्तिवार शब्द विधान
- प्रथम एवं तृतीय पंक्ति तुकान्त
- गंभीर अन्तर्कथ्य, सरल कथन
- जापानी हाइकू अभिप्रेरित, पूर्णतः भारतीयकृत, अभिनव विधा
- हाइकू से सर्वथा भिन्न
- जाइकू का 'जा' जापान एवं शेषांश हाइकू से ध्वनि-साम्य हेतु
- प्रवर्तक : अरुण मिश्र
- प्रवर्तन काल : जुलाई, २००४.
मीठे जाइकू :
1. दुनिया एक जलेबी।
भीतर रस से सनी, पगी,
बाहर कुरकुरी, फरेबी॥
(अन्तर्कथ्य : जगत-प्रपंच)
2. मथुरा पेड़ो भाय।
ना खाये, सो तो पछताये,
खाये हू पछताय॥
2. मथुरा पेड़ो भाय।
ना खाये, सो तो पछताये,
खाये हू पछताय॥
(अन्तर्कथ्य : कर्म-फल-आसक्ति)
3. मानुस है रसगुल्ला।
रस में डूबा, फूला-फूला,
निचुड़े पर कठमुल्ला॥
रस में डूबा, फूला-फूला,
निचुड़े पर कठमुल्ला॥
(अन्तर्कथ्य : मानव मन)
4. बर्फी खोये केर।
बदले रूप, दूध-चीनी भये,
अस्सी रुपये सेर॥
(अन्तर्कथ्य : रूप-गुण परिवर्तन)
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