सोमवार, 11 जून 2012

१०० वर्ष तक के बच्चों के लिये मीठे जाइकू.....

 १०० वर्ष तक के बच्चों के लिये मीठे जाइकू..... 

(टिप्पणी : कुछ अति प्रबुद्ध मित्रों हेतु वर्ष 2004 में रचे गए मीठे जाइकू का आप भी आनन्द लें।)

- अरुण मिश्र.

जाइकू संरचना :
  • तीन पंक्तियॉ
  • ३,५,३  का क्रमशः पंक्तिवार शब्द विधान 
  • प्रथम एवं तृतीय पंक्ति तुकान्त  
  • गंभीर अन्तर्कथ्य, सरल कथन
  • जापानी हाइकू अभिप्रेरित, पूर्णतः भारतीयकृत, अभिनव विधा
  • हाइकू से सर्वथा भिन्न
  • जाइकू का 'जा' जापान एवं शेषांश हाइकू से ध्वनि-साम्य  हेतु 
  • प्रवर्तक : अरुण मिश्र
  • प्रवर्तन काल : जुलाई, २००४.

मीठे जाइकू :

1. दुनिया एक जलेबी।
    भीतर रस से सनी, पगी,
    बाहर कुरकुरी, फरेबी॥

     (अन्तर्कथ्य : जगत-प्रपंच)

2.  मथुरा पेड़ो भाय।
     ना खाये, सो तो पछताये,
     खाये हू पछताय॥

     (अन्तर्कथ्य : कर्म-फल-आसक्ति)
 
3. मानुस है रसगुल्ला।
    रस में डूबा, फूला-फूला,
    निचुड़े पर कठमुल्ला॥

      (अन्तर्कथ्य : मानव मन)

4.  बर्फी खोये केर।
     बदले रूप, दूध-चीनी भये,
     अस्सी रुपये सेर॥

      (अन्तर्कथ्य : रूप-गुण परिवर्तन)
                              *

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