शौक़े-परवाज़ अपने पर तोलो......
-अरुण मिश्र.
यूँ ज़ुबां से तो न ज़हर घोलो।
ज़ान ग़र चाहिये, तो यूँ बोलो॥
प्यार की एक नदी बहती है।
दाग, अपने गुनाह के धो लो॥
हो न जायें मेरे अरमां पत्थर।
ऐ बुतों! अब तो कुछ हिलो-डोलो॥
इस क़फ़स की हैं तीलियाँ फ़ानी।
शौक़े - परवाज़, अपने पर तोलो॥
ख़ुद - बख़ुद आयेगी हवा ताज़ा।
तुम 'अरुन' सिर्फ़, खिड़कियाँ खोलो॥
*
-अरुण मिश्र.
यूँ ज़ुबां से तो न ज़हर घोलो।
ज़ान ग़र चाहिये, तो यूँ बोलो॥
प्यार की एक नदी बहती है।
दाग, अपने गुनाह के धो लो॥
हो न जायें मेरे अरमां पत्थर।
ऐ बुतों! अब तो कुछ हिलो-डोलो॥
इस क़फ़स की हैं तीलियाँ फ़ानी।
शौक़े - परवाज़, अपने पर तोलो॥
ख़ुद - बख़ुद आयेगी हवा ताज़ा।
तुम 'अरुन' सिर्फ़, खिड़कियाँ खोलो॥
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