मंगलवार, 9 सितंबर 2014

नाच रसीले मन !

बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में 











नाच रसीले मन ! 

-अरुण मिश्र

ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
           *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
            *
घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
फिर बिखरा काजल।।
            *
पावस के घन।
रस बरसायें; छूम छनन छन,
नाच, रसीले मन!!
            *
केतिक करूँ  उपाय।
नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
आँखिन  नाहिं समाय।।
            *
चपला घन चमके।
रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
हैं जम के।।
            *
सोंधी धरती महके।
भीग भीग, वन उपवन लहके;
जन जीवन चहके।।
             *
 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें