शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

फिर क्यूँ सन्नाटा.......

पिछली एक पोस्ट में तीन पदों की कुछ छोटी-छोटी
तुकांत रचनाएँ, पदवार क्रमशः ३, ५, ३ के शब्द-विधान
में प्रस्तुत की थीं। उसी क्रम में कुछ और त्रिपदियाँ प्रस्तुत हैं ।        


फिर क्यूँ सन्नाटा.......

- अरुण मिश्र

कैसी अनहोनी हुई।
मौत के थे हाथ लम्बे;
जि़न्दगी बौनी हुई।।


फिर क्यूँ सन्नाटा ?
सन्नाटे का विषम जाल तो,
ध्वनियों ने काटा।।


निर्मित जिनसे चीर।
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर;
करते हमें अधीर।।


चुप धरती, आकाश।
प्रकृति चीन्हती मन का त्रास,
होती साथ उदास।।


तेरा मन है।
रूप, रंग, रस, गन्ध लुटाता,
खिला सुमन है।।

               *


 

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