प्रथम शैलपुत्री |
"अर्द्धचन्द्र मस्तक पर, शूल लिए, वृषारूढ़ ;
इच्छित फलवाली, यशस्विनि! शैलपुत्री माँ !"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।"
(मूल श्लोक)
द्वितीय ब्रह्मचारिणी |
"सदा कमण्डलु-अक्षमाल तुम-
धरहु, युगल-कर-कमल मातु !
मो पर होहु प्रसन्न देवि हे !
ब्रह्मचारिणी उत्तमा।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"दधाना
करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।"
(मूल श्लोक)
तृतीय चन्द्रघण्टा |
"सिंह पर आरूढ़, पिण्डज,
दैत्य दल पर अति कुपित।
विविध आयुध कर धरे,
माँ चन्द्रघण्टा इति, विश्रुत।।
हे तृतीया रूप, मुझको
निज कृपा का दो प्रसाद।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
'पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।"
(मूल श्लोक)
चतुर्थ कूष्माण्डा |
"अपने करकमल धरे,
अमृत-रुधिर-पूर्ण कलश ।
देवी कूष्माण्डा,
देवी कूष्माण्डा,
शुभ फल मुझको दें सदा ।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।।"
(मूल श्लोक)
पञ्चम स्कन्दमाता |
"कर-युगल में कमल शोभित
नित्य सिंहासनगता।
स्कन्दमाता हे यशस्वनि-
देवि! शुभ फल दो सदा।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।"
(मूल श्लोक)
षष्ठम कात्यायनी |
"शार्दूल वाहन वर,
चन्द्रहास उज्ज्वल कर ;
शुभदा ! दानवघातिनि !
देवी कात्यायनी।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना
कात्यायिनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।।"
(मूल श्लोक )
सप्तम कालरात्रि |
"मात्र एक वेणी है, जवाकुसुम-रक्त-कर्ण ;
गर्दभ आरूढ़, नग्न, तैल से सना शरीर ;
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण।
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण।
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।"
(मूल श्लोक)
अष्टम महागौरी |
"धारे शुचि श्वेत वस्त्र, श्वेत वृषभ पर सवार।
शिव को देती प्रमोद, महागौरी शुभ दे तू।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।"
(मूल श्लोक)
नवम सिद्धिदायिनी |
"सिद्ध से, गन्धर्व से, यक्षादि, सुर से, असुर से;
सदा सेवित सिद्धिदायिनि देवि, दात्री सिद्धि की ।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।"
(मूल श्लोक)
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