मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

ये धुआँ सा कहाँ से उठता है... / मीर तक़ी मीर / मेहदी हसन

https://youtu.be/QSDtPJV0G3w
ख़ुदा-ए सुख़न 'मीर' का कलाम, शाहंशाह-ए-ग़ज़ल मेहदी हसन की आवाज़ में

देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

गोर किस दिलजले की है ये फ़लक
शोला इक सुब्ह याँ से उठता है

ख़ाना-ए -दिल से ज़ीनहार न जा
कोई ऐसे मकाँ से उठता है

नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर इक आसमाँ से उठता है

लड़ती है उसकी चश्म-ए-शोख़ जहाँ
एक आशोब वाँ से उठता है

सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज़
दूद कुछ आशियाँ से उठता है

बैठने कौन दे है फिर उसको
जो तिरे आस्ताँ से उठता है

यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ नातवाँ से उठता है
*

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