शान्त हो मेरे व्यथित मन
- अरुण मिश्र
भेद भव- विक्षोभ-बन्धन।
शान्त हो मेरे व्यथित मन।।
शान्त भौतिक ताप, तन के।
शान्त सब सन्ताप, मन के।
शमित उर के दाह सारे-
हों, भुवन के सकल जन के।।
वारि वह बरसे, सजल-घन।
शान्त हो, मेरे व्यथित मन।।
शान्त पृथ्वी, शान्त नभ, घन।
शान्त पर्वत, सिन्धु, सरि, वन।
शान्त रवि, शशि और तारे,
हो, प्रकृति का शान्त कण-कण।।
पवन लेपे शीत-चन्दन।
शान्त हो, मेरे व्यथित मन।।
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(संग्रह "अंजलि भर भाव के प्रसून" से)
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