https://youtu.be/qO6l9ZOBX8M
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।१।।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ।।२।।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ।।३।।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ।।४।।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।५।।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।।६।।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ।।९।।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।१०।।
अर्थ
जिनके शरीर का रंग भगवान् शंकर के समान कृष्ण तथा नीला है उन शनि देव को मेरा नमस्कार है, इस जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप शनैश्चर को पुनः पुनः नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है, जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट तथा भयानक आकार वाले शनि देव को नमस्कार है। जिनके शरीर दीर्घ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु जर्जर शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार नमस्कार है। हे शनि देव ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन, भास्कर-पुत्र, अभय देने वाले देवता, वलीमूख आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, ऐसे शनिदेव को प्रणाम है। आपकी दृष्टि अधोमुखी है आप संवर्तक, मन्दगति से चलने वाले तथा जिसका प्रतीक तलवार के समान है, ऐसे शनिदेव को पुनः-पुनः नमस्कार है। आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सर्वदा सर्वदा नमस्कार है। जिसके नेत्र ही ज्ञान है, काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण क्षीण लेते हैं वैसे शनिदेव को नमस्कार। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते ऐसे शनिदेव को प्रणाम। आप मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूं और आपकी शरण में आया हूं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें