https://youtu.be/Nod_i0EKVRw
श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं पशुपतिं द्युपतिं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सतीपतिम् । प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ १ ॥ न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम् । अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ २ ॥ मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम् । प्रमथभूतगणैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ३ ॥ शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम् । अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥४॥ नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम्। चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥५॥ मखविनाशकरं शशिशेखरं सततमध्वरभाजि फलप्रदम् । प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ६ ॥ मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं मरणजन्मजराभयपीडितम् । जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ७॥ हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम् । त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥८॥ पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरचितं पृथिवीपतिसूरिणा । पठति संशृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम्॥९॥
॥ इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥
अर्थ
दक्षकन्या सतीके स्वामी हैं, शरणागत प्राणियों और भक्तजनोंकी पीड़ा दूर
करनेवाले हैं, उन परमपुरुष पार्वती-वल्लभ शंकरजीको भजो ॥ १ ॥
और कुल – इनमें से कोई भी नहीं बचा सकता, इसलिये तुम गिरिजापतिको भजो ॥ २ ॥
कुशल हैं, प्रमथ और भूतगण जिनकी सेवामें रहते हैं, उन गिरिजापतिको भजो॥ ३ ॥
शरणागतोंको शरण, सुख और अभय देनेवाले हैं, उन दयासागर गिरिजापतिका
भजन करो ॥ ४ ॥
जिनका शरीर चिताकी धूलिसे धूसर है, उन वृषभध्वज गिरिजापतिको भजो ॥ ५ ॥
सुशोभित हैं, जो यज्ञ करनेवालोंको सदा ही फल देनेवाले हैं और जो प्रलयकी अग्निमें
देवता, दानव और मानवोंको दग्ध करनेवाले हैं, उन गिरिजापतिको भजो ॥ ६ ॥
व्याकुल देखकर बहुत दिनोंसे हृदयमें संचित मदका त्याग कर उन गिरिजापतिको भजो ॥ ७॥
प्रणाम करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं तथा जो त्रिभुवनके स्वामी हैं, उन गिरिजापतिको भजो ॥ ८ ॥
श्रवण करता है, वह शिवपुरीमें निवास करता और आनन्दित होता है ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥