गुरुवार, 20 जुलाई 2023

ये न थी हमारी क़िस्मत...'मिर्ज़ा ग़ालिब' एवं अज़ब अपना हाल होता...'दाग़ देहलवी' / गायन : टीना सानी

 https://youtu.be/q7Tcno3ZQ4w 

टीना सानी एक पाकिस्तानी महिला गायिका हैं जो अपनी शास्त्रीय 
और अर्ध-शास्त्रीय उर्दू ग़ज़लों के लिए प्रसिद्ध हैं ।
टीना सानी का जन्म तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के ढाका में हुआ था ; परिवार कुछ वर्षों के लिए 
काबुल चला गया, जहां उनके पिता, नासिर साहनी , कराची जाने से पहले एक तेल कंपनी के लिए 
काम करते थे, जहां कराची अमेरिकन स्कूल से स्नातक होने के बाद , वह व्यावसायिक कला का 
अध्ययन करने चली गईं। उन्हें शास्त्रीय संगीत में दिल्ली घराने के उस्ताद रमज़ान खान और 
उस्ताद चांद अमरोहवी के बेटे उस्ताद निज़ामुद्दीन खान से प्रशिक्षित किया गया था। टीना ने 
ग़ज़ल उस्ताद मेहदी हसन से विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया 

ग़ज़लें :
ये न थी हमारी क़िस्मत - मिर्ज़ा ग़ालिब
अज़ब अपना हाल होता - दाग़ देहलवी 
गायन : टीना सानी 
प्रस्तोता : अनवर मसूद 

ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता - मिर्ज़ा ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पर जिए हम, तो ये जान झूठ जाना
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना के बँधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तुवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़मग़ुसार होता

रगे-ए-संग से टपकता, वो लहू के फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरार होता

ग़म अगरचे जां-गुसिल है, प कहाँ बचें के दिल है
ग़म-ए-इश्क़ ग़र न होता, ग़म-ए-रोज़गार होता

कहूँ किस से मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुस्वा, हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सकता के यगाना है वो यकता
जो दुई की बू भी होती, तो कहीं दो-चार होता

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़, ये तिरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझते, जो न बादा-ख़्वार होता
अज़ब अपना हाल होता - दाग़ देहलवी 

अज़ब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती, कभी दिल निसार होता

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूठे वादे करता
तुम ही मुंसिफ़ी से कह दो, तुम्हें ए'तिबार होता ?

ये मज़ा था दिल-लगी का, के बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता

न मज़ा है दुश्मनी में, न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर-ग़ैर होता कोई यार-यार होता

तेरे वादे पर सितमग़र, अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ए'तिबार होता

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