कैफ़ भोपाली एक भारतीय उर्दू शायर और फ़िल्मी गीतकार थे। वे 1972 में बनी
कमाल अमरोही की फिल्म पाक़ीज़ा में मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाये गीत "चलो दिलदार
चलो....." से लोकप्रिय हुए। कैफ़ भोपाली ने कई हिंदी फिल्मों में गीत लिखे,
किन्तु 1972 में बनी पाक़ीज़ा उनकी यादगार फिल्म रही। इस फिल्म के
लगभग सभी गाने लोकप्रिय हुए, जैसे "तीरे नज़र..", "चलो दिलदार चलो,
चाँद के पार चलो...." आदि। सत्तर-अस्सी के दशक में वे लगातार मुशायरों
की जान बने रहे। उन्होंने कई प्रसिद्ध गज़लें कही हैं, जैसे "तेरा चेहरा कितना
सुहाना लगता है", झूम के जब रिन्दों ने पिला दी आदि जिसे आवाज़ दी है
जगजीत सिंह ने। कमाल अमरोही की एक और फिल्म रज़िया सुल्तान में उनके द्वारा
लिखा एक गाना "ऐ खुदा शुक्र तेरा...." काफी लोकप्रिय हुआ। उनकी पुत्री "परवीन कैफ़"
भी उर्दू की मशहूर शायरा हैं।
कमाल अमरोही की फिल्म पाक़ीज़ा में मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाये गीत "चलो दिलदार
चलो....." से लोकप्रिय हुए। कैफ़ भोपाली ने कई हिंदी फिल्मों में गीत लिखे,
किन्तु 1972 में बनी पाक़ीज़ा उनकी यादगार फिल्म रही। इस फिल्म के
लगभग सभी गाने लोकप्रिय हुए, जैसे "तीरे नज़र..", "चलो दिलदार चलो,
चाँद के पार चलो...." आदि। सत्तर-अस्सी के दशक में वे लगातार मुशायरों
की जान बने रहे। उन्होंने कई प्रसिद्ध गज़लें कही हैं, जैसे "तेरा चेहरा कितना
सुहाना लगता है", झूम के जब रिन्दों ने पिला दी आदि जिसे आवाज़ दी है
जगजीत सिंह ने। कमाल अमरोही की एक और फिल्म रज़िया सुल्तान में उनके द्वारा
लिखा एक गाना "ऐ खुदा शुक्र तेरा...." काफी लोकप्रिय हुआ। उनकी पुत्री "परवीन कैफ़"
भी उर्दू की मशहूर शायरा हैं।
तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूं मैं हज़ारों से...
तन-ए-तन्हा (१) मुक़ाबिल (२) हो रहा हूं मैं हज़ारों से
हसीनों से, रक़ीबों (३) से, ग़मों से, ग़म-गुसारों (४) से
उन्हें मैं छीन कर लाया हूं कितने दावेदारों से
शफ़क़ (५) से, चा़दनी रातों से, फूलों से, सितारों से
सुने कोई तो अब भी रोशनी आवाज़ देती है
पहाड़ों से, गुफाओं से, बयाबानों से, ग़ारों (६) से
हमारे दाग़-ए-दिल, ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ मिलते-जुलते हैं
गुलों (७) से, गुल-रुख़ों (८) से, मह-वशों (९) से, माह-पारों (१०) से
कभी होता नहीं महसूस वो यूं क़त्ल करते हैं
निगाहों से, कनखियों से, अदाओं से, इशारों से
हमेशा एक प्यासी रूह (११) की आवाज़ आती है
कुओं से, पनघटों से, नद्दियों से, आबशारों (१२) से
न आए पर न आए वो उन्हें क्या क्या ख़बर भेजी
लिफ़ाफ़ों से, ख़तों से, दुख भरे पर्चों से, तारों से
ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं
उमीदों से, भरोसों से, दिलासों (१३) से, सहारों से
वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी ताल्लुक़ था
दशहरे से, दिवाली से, बसंतों से, बहारों (१४) से
कभी पत्थर के दिल ऐ 'कैफ़' पिघले हैं, न पिघलेंगे
मुनाजातों (१५) से, फ़रियादों (१६) से, चीख़ों से, पुकारों से
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(१=अपने ही दम पर, २=सामना करना, ३=प्रतिद्वंदियों, ४=हमदर्द,
५=उषा, ६=गुफाओं, ७=फूलों, ८=फूल जैसे चेहरों, ९=चंद्रमुखियों,
१०=चांद जैसे चेहरों, ११=आत्मा, १२=झरनों, १३=तसल्लियों,
१४=वसंतों, १५=प्रार्थनाओं, १६=पुकारों)★★★★★
५=उषा, ६=गुफाओं, ७=फूलों, ८=फूल जैसे चेहरों, ९=चंद्रमुखियों,
१०=चांद जैसे चेहरों, ११=आत्मा, १२=झरनों, १३=तसल्लियों,
१४=वसंतों, १५=प्रार्थनाओं, १६=पुकारों)
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