सोमवार, 31 जुलाई 2023

पशुपत्याष्टकम् l / भजत रे मनुजा गिरिजा पतिम .../ श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं / गायन : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/Nod_i0EKVRw  

श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं पशुपतिं द्युपतिं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सतीपतिम् । प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ १ ॥ न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम् । अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ २ ॥ मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम् । प्रमथभूतगणैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ३ ॥ शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम् । अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥४॥ नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम्। चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥५॥ मखविनाशकरं शशिशेखरं सततमध्वरभाजि फलप्रदम् । प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ६ ॥ मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं मरणजन्मजराभयपीडितम् । जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ७॥ हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम् । त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥८॥ पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरचितं पृथिवीपतिसूरिणा । पठति संशृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम्॥९॥

इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम्

अर्थ

अरे मनुष्यो ! जो समस्त प्राणियों, स्वर्ग, पृथ्वी और नागलोकके पति हैं,
दक्षकन्या सतीके स्वामी हैं, शरणागत प्राणियों और भक्तजनोंकी पीड़ा दूर
करनेवाले हैं, उन परमपुरुष पार्वती-वल्लभ शंकरजीको भजो ॥ १ ॥

ऐ मनुष्यो ! कालके वशमें पड़े हुए जीवको पिता, माता, भाई, बेटा, अत्यन्त बल
और कुल – इनमें से कोई भी नहीं बचा सकता, इसलिये तुम गिरिजापतिको भजो ॥ २ ॥

रे मनुष्यो ! जो मृदंग और डमरू बजानेमें निपुण हैं, मधुर पंचम स्वरके गायनमें
कुशल हैं, प्रमथ और भूतगण जिनकी सेवामें रहते हैं, उन गिरिजापतिको भजो॥ ३ ॥

हे मनुष्यो ! 'शिव ! शिव ! शिव!' कहकर मनुष्य जिनको प्रणाम करते हैं, जो
शरणागतोंको शरण, सुख और अभय देनेवाले हैं, उन दयासागर गिरिजापतिका
भजन करो ॥ ४ ॥

अरे मनुष्यो ! जो नरमुण्डरूपी मणियोंका कुण्डल और साँपोंका हार पहनते हैं,
जिनका शरीर चिताकी धूलिसे धूसर है, उन वृषभध्वज गिरिजापतिको भजो ॥ ५ ॥

अरे मनुष्यो ! जिन्होंने दक्ष-यज्ञका विध्वंस किया था; जिनके मस्तकपर चन्द्रमा
सुशोभित हैं, जो यज्ञ करनेवालोंको सदा ही फल देनेवाले हैं और जो प्रलयकी अग्निमें
देवता, दानव और मानवोंको दग्ध करनेवाले हैं, उन गिरिजापतिको भजो ॥ ६ ॥

अरे मनुष्यो ! जगत्‌को जन्म, जरा और मरणके भयसे पीड़ित, सामने उपस्थित भयसे
व्याकुल देखकर बहुत दिनोंसे हृदयमें संचित मदका त्याग कर उन गिरिजापतिको भजो ॥ ७॥

अरे मनुष्यो ! विष्णु, ब्रह्मा और इन्द्र जिनकी पूजा करते हैं, यम और कुबेर जिनको
प्रणाम करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं तथा जो त्रिभुवनके स्वामी हैं, उन गिरिजापतिको भजो ॥ ८ ॥

जो मनुष्य पृथ्वीपति सूरिके बनाये हुए इस अद्भुत पशुपति अष्टकका सदा पाठ और
श्रवण करता है, वह शिवपुरीमें निवास करता और आनन्दित होता है ॥ ९ ॥

इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम्

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