सोमवार, 25 अगस्त 2025

गगन के उस पार क्या है.../ कवि स्वर्गीय श्याम नारायण पाण्डेय

 https://youtu.be/zhrN6cnCF4s  


गगन के उस पार क्या है – महान कवि 
श्यामनारायण पाण्डेय की कृति, ‘जौहर’ 
की मंगलाचरण कविता, जो ईश्वर, ब्रह्म 
और सृष्टि के रहस्य की खोज को दर्शाती है।

यह रचना गहरे दार्शनिक भाव, काव्यात्मक 
सौंदर्य और आध्यात्मिक चिन्तन से परिपूर्ण है।

मंगलाचरण

गगन के उस पार क्या,
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?


दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?


चाहता है सिन्धु किस पर
जल चढ़ाकर मुक्त होना?
चाहता है मेघ किसके
चरण को अविराम धोना?


तिमिर - पलकें खोलकर
प्राची दिशा से झाँकती है;
माँग में सिन्दूर दे
ऊषा किसे नित ताकती है?


गगन में सन्ध्या समय
किसके सुयश का गान होता?
पक्षियों के राग में किस
मधुर का मधु - दान होता?


पवन पंखा झल रहा है,
गीत कोयल गा रही है।
कौन है? किसमें निरन्तर
जग - विभूति समा रही है?


तूलिका से कौन रँग देता
तितलियों के परों को?
कौन फूलों के वसन को,
कौन रवि - शशि के करों को?


कौन निर्माता? कहाँ है?
नाम क्या है? धाम क्या है?
आदि क्या निर्माण का है?
अन्त का परिणाम क्या है?


खोजता वन - वन तिमिर का
ब्रह्म पर पर्दा लगाकर।
ढूँढ़ता है अन्ध मानव
ज्योति अपने में छिपाकर॥


बावला उन्मत्त जग से
पूछता अपना ठिकाना।
घूम अगणित बार आया,
आज तक जग को न जाना॥


सोचता जिससे वही है,
बोलता जिससे वही है।
देखने को बन्द आँखें
खोलता जिससे वही है॥


आँख में है ज्योति बनकर,
साँस में है वायु बनकर।
देखता जग - निधन पल - पल,
प्राण में है आयु बनकर॥


शब्द में है अर्थ बनकर,
अर्थ में है शब्द बनकर।
जा रहे युग - कल्प उनमें,
जा रहा है अब्द बनकर॥


यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होगा।
हृदय उसका धाम होगा,
नाम उसका राम होगा॥


सृष्टि रचकर ज्योति दी है,
शशि वही, सविता वही है।
काव्य - रचना कर रहा है,
कवि वही, कविता वही है॥

गुरुवार, 21 अगस्त 2025

रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन बाजत है पैजनियां.../ रचना : सूरदास / गायन : गोपाल महाराज

https://youtu.be/1UthjuToG_s   

रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

मात यशोदा चलन सिखावे,
अंगुली पकड़ दोउ कनियां।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

पीत झंगुलिया तन पर सोहे,
सिर टोपी लटकनियाँ।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

तीन लोक जाके उदर  विराजे,
ताहि नचावे ग्वालनियाँ।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

सुर दास प्रभु तन को निहारे,
सकल विश्वव् को धनियां।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

मंगलवार, 19 अगस्त 2025

हाथ बारि बैसल छथि समधि.../ मैथिली डहकन गीत /गीत रचना : दीपिका झा / गायन : मनोरंजन झा एवं प्रीति राज

https://youtu.be/ImjK_Aptrw0   

*सौजन कालक गीत*

हाथ बारि बैसल छथि समधि
किए छनि मुॅंह मलीन यौ
माइक दूध छनि मोन पड़ल
आकि पड़लनि मोन समधिन यौ

बहिनी हिनकर अनमन नटुआ
दिनभरि रहनि निपत्ता यौ
एक बहिनपर कै टा पाहुन
दिल्ली, बम्बई कलकत्ता यौ
केहनो उढ़रल हिनक बहिन
मुदा हमरा भैयाकेॅं पसीन यौ
माइक...

भाइ नचै छनि पमरिया संगे
पहीरि क' नूआ-साया यौ
मुठ्ठी भरि नहि मासु देहपर
घुठ्ठी भरि के काया यौ
बेटा बेचलकनि बाबू हिनकर
इहो त' सैह केलखिन यौ
माइक...

पान-सुपारी कल्ला धेने
घूमै छनि मेला-ठेला यौ
खसैत बयसमे चढ़ैत जुआनी
सभदिन करैन झमेला यौ
नाओ बजाबनि हिनकर घरनी
बोलियो लेलकनि छीन यौ
माइक...

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो.../ सन्त कबीर / गायन : कल्पना पटवारी

https://youtu.be/bOTGnLGXp0Q   

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।


चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।


उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।


आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो


चार जाने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो


कहत कबीर सुनो भाई साधो
जग से नाता छूटल हो

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से.../ रचना : बाबू रघुबीर नारायण / गायन : चन्दन तिवारी एवं अन्य

https://youtu.be/DK5skOOnzo4   

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया


एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया


जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहवां कुहुकी कोइली गावे रे बटोहिया


पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से
कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया


बिपिन अगम घन सघन बगन बीच
चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया


द्रुम बट पीपल कदंब नींब आम वृछ
केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया


तोता तुती बोले रामा बोले भेंगरजवा से
पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया


सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया


गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियां से
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया


ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया


उपर अनेक नदी उमड़ि घुमड़ि नाचे
जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया


आगरा प्रयाग कासी दिल्ली कलकतवा से
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया


जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहां ऋसि चारो बेद गावे रे बटोहिया


सीता के बीमल जस राम जस कॄष्ण जस
मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया


ब्यास बालमीक ऋसि गौतम कपिलदेव
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया


रामानुज-रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला
ब्रह्म सुख बन के भंवर रे बटोहिया


नानक कबीर गौर संकर श्रीरामकॄष्ण
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया


बिद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया


जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ
जहां सुख झूले धान खेत रे बटोहिया


बुद्धदेव पृथु बिक्रsमार्जुनs सिवाजीss के
फिरि-फिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया


अपर प्रदेस देस सुभग सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया


सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेही
जन 'रघुबीर' सिर नावे रे बटोहिया।

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष.../ नज़्म / चाँद मुबारक / अरुण मिश्र

https://youtu.be/f3vOwfc_4rE   

तिरसठ बरस पहले,
पन्द्रह अगस्त की शब,
थी रात आधी बाक़ी,
आधी ग़ुज़र चुकी थी।
या शाम से सहर की-
मुश्क़िल तवील दूरी,
तय हो चुकी थी आधी।
ख़त्म हो रहा सफ़र था-
राहों में तीरग़ी के-
औ’, रोशनी की जानिब।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
दिल्ली के आसमाँ में,
उस ख़ुशनुमां फ़िज़ाँ में,
इक अजीब चाँद चमका,
रंगीन चाँद चमका।।


थे तीन रंग उसमें-
वो चाँद था तिरंगा।
वे तरह-तरह के रंग थे,
रंग क्या थे वे तरंग थे,
हम हिन्दियों के मन में -
उमगे हुये उमंग थे।
कु़र्बानियों का रंग भी,
अम्नो-अमन का रंग भी,
था मुहब्बतों का रंग भी,
ख़ुशहालियों का रंग भी,
औ’, बुढ़िया के चर्खे़ के-
उस पहिये का निशां भी-
बूढ़े से लेके बच्चे तक-
जिसको जानते हैं।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
जब रायसीना के इन-
नन्हीं पहाड़ियों पर-
यह चाँद उगा देखा-
ऊँचे हिमालया ने,
कुछ और हुआ ऊँचा।
गंगों-जमन की छाती-
कुछ और हुई चौड़ी।
औ’, हिन्द महासागर-
में ज्वार उमड़ आया।
बंगाल की खाड़ी से-
सागर तलक अरब के-
ख़ुशियों की लहर फैली,
हर गाँव-शहर फैली।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
जब राष्ट्रपति भवन में-
यह चाँद चढ़ा ऊपर,
चढ़ता ही गया ऊपर,
सूरज उतार लाया,
सूरज कि , जिसकी शोहरत-
थी, डूबता नहीं है,
वह डूब गया आधा-
इस चाँद की चमक से।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
इस चाँद को निहारा,
जब लाल क़िले ने तो-
ख़ुशियों से झूम उट्ठीं-
बेज़ान दीवारें भी।
पहलू में जामा मस्जिद-
की ऊँची मीनारें भी-
देने लगीं दुआयें।
आने लगी सदायें-
हर ज़र्रे से ग़ोशे से-
ये चाँद मुबारक हो।
इस देश की क़िस्मत का-
ये चाँद मुबारक हो।
इस हिन्द की ताक़त का-
ये चाँद मुबारक हो।
हिन्दोस्ताँ की अज़मत का-
चाँद मुबारक हो।।


रोजे़ की मुश्क़िलों के-
थी बाद, ईद आयी।
क़ुर्बानियाँ शहीदों की-
थीं ये रंग लायीं।
अब फ़र्ज़ है, हमारा-
इसकी करें हिफ़ाज़त,
ता’, ये रहे सलामत-
औ’, कह सकें हमेशा-
हर साल-गिरह पर हम-
ये, एक दूसरे से-
कि, चाँद मुबारक हो-
ये तीन रंग वाला,
हिन्दोस्ताँ की अज़मत का-
चाँद मुबारक हो।
ये चाँद सलामत हो,
ये चाँद मुबारक हो।।

(एक पुरानी पूर्व प्रकाशित नज़्म)

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

वन्दे मातरम् .../ रचना : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/Mt_McULqya4   

वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
जल से भरपूर, फलों से लदी, चंदन की शीतल हवा से ठंडी।
शस्य श्यामलां मातरं।
हरी-भरी फसलों वाली मातृभूमि।

शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्

चाँदनी से नहाई, पुलकित रातें।
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
फूलों से लदे पेड़ों की शोभा से सजी।
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्।
मधुर मुस्कान वाली, मधुर वाणी वाली।
सुखदां वरदां मातरम्।।
सुख देने वाली, वरदान देने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

सप्त कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले
सात करोड़ कंठों से गूंजती।
निसप्त कोटि भुजैर्धृउत खरकरवाले
सत्तर करोड़ बाहुओं से बल पाती।
के बोले मा तुमी अबले
कौन कहता है कि तुम निर्बल हो, माँ?
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्
असीम बल की धारिणी, उद्धार करने वाली को प्रणाम।
रिपुदलवारिणीं मातरम्
शत्रु दल को नष्ट करने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म
तुम ही ज्ञान हो, तुम ही धर्म हो, 
तुम ही हृदय हो, तुम ही जीवन का मर्म हो।
त्वं हि प्राणाः शरीरे
तुम ही प्राण हो शरीर के।
बाहुते तुमि मा शक्ति,
बाहु में तुम हो शक्ति।
हृदये तुमि मा भक्ति,
हृदय में तुम हो भक्ति।
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे मन्दिरे
तेरी ही प्रतिमा हम मंदिर-मंदिर में गढ़ते हैं।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
तुम ही हो दुर्गा, दसों अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाली।
कमला कमलदल विहारिणी
तुम ही हो लक्ष्मी, कमल के दल में विहार करने वाली।
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
तुम ही हो सरस्वती, विद्या देने वाली, मैं तुम्हें प्रणाम
करता हूँ।

नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
निर्मल, अद्वितीय कमल जैसी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।
सुजलां सुफलां मातरम्
जल से भरपूर, फलों से लदी माँ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
श्यामल, सरल, मधुर मुस्कान से सजी।
धरणीं भरणीं मातरम्
धरती का भार सँभालने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की

रविवार, 3 अगस्त 2025

पार्वतीवल्लभ अष्टकम.../ स्वर : दीपश्री एवं दिव्यश्री

https://youtu.be/BMq1Azeshzg   

नमो भूतनाथं नमो देवदेवं 
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजः। (दिव्यतेजम्) 
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥ 


सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं 
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । 
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥ 


श्मशाने शयानं महास्थानवासं (श्मशानं भयानं) 
शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् । 
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं (पिशाचं निशोचं पशूनां)
 भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥ 


फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं (फणीनागकण्ठं, भुजङ्गाङ्गभूषं) 
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । 
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥ 


शिरश्शुद्धगङ्गा शिवावामभागं 
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । (वियद्दीर्घकेशं, बृहद्दिव्यकेशं सहोमं) 
फणीनागकर्णं सदा भालचन्द्रं (बालचन्द्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥ 


करे शूलधारं महाकष्टनाशं 
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् । (वरेशं महेशं) 
धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं (धने चारु ईशं, धनेशस्य मित्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥ 


उदानं सुदासं सुकैलासवासं (उदासं) 
धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । (धरानिर्झरे) 
अजं हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥ 


मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं 
द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् । (द्विजा सम्पठन्तं, द्विजैः स्तूयमानं, वेदशात्रैः) 
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं (शिवं हि) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥ 


सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं 
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् । 
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं (महातीर्थवासम्) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥ 


इति पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।

जय सुगन्धिनी त्रिपुर सुन्दरी.../ स्वर : देवराज मुथुस्वामी

https://youtu.be/xZ0SDdckpG0  


जय सुगन्धिनी
त्रिपुर सुन्दरी 
जय महेश्वरी
जय जनप्रिये

जय सुनादिनी
जगत पराम्बिके 
महिषमर्दिनी 
देवि माश्रये 

शरणम् ईश्वरी देवी
शरणम् ईश्वरी
शरणम् ईश्वरी देवी
शरणम् ईश्वरी

आदि पराशक्ति
अम्ब बालिके
हरि मनोहरी
हर भूषणी

अयि सुभाषिणी 
आदि नायकी 
जय महालक्ष्मी
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी..)

शशिकलाधरी 
शारदाम्बिके
सर्वरूपिणी
हँसवाहिनी 

ब्रह्मवर्धिनी 
पुस्तकधारिणी 
जय सरस्वती
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी...)

जय जनप्रियम् 
ज्योति निर्मलम्
जय शिवप्रियम् 
सुन्दराननम्

जति सुलोचनी
सिंहवाहिनी 
जय महाशक्ति
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी...)

शनिवार, 2 अगस्त 2025

शिवोऽहम् शिवोऽहम्.../ आदि शंकराचार्य कृत/ स्वर : शुभांगी जोशी

https://youtu.be/K3eASJiYVVo   

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं 
पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय 
पूर्णमेवावशिष्यते॥


 मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम्
 न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: 
न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ  न चोपस्थपायू 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥


मैं न प्राण हूं,  न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ 
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥


न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥


मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥


न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ
 विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥


मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

 
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥