तिरसठ बरस पहले, पन्द्रह अगस्त की शब, थी रात आधी बाक़ी, आधी ग़ुज़र चुकी थी। या शाम से सहर की- मुश्क़िल तवील दूरी, तय हो चुकी थी आधी। ख़त्म हो रहा सफ़र था- राहों में तीरग़ी के- औ’, रोशनी की जानिब।।
पन्द्रह अगस्त की शब, दिल्ली के आसमाँ में, उस ख़ुशनुमां फ़िज़ाँ में, इक अजीब चाँद चमका, रंगीन चाँद चमका।।
थे तीन रंग उसमें- वो चाँद था तिरंगा। वे तरह-तरह के रंग थे, रंग क्या थे वे तरंग थे, हम हिन्दियों के मन में - उमगे हुये उमंग थे। कु़र्बानियों का रंग भी, अम्नो-अमन का रंग भी, था मुहब्बतों का रंग भी, ख़ुशहालियों का रंग भी, औ’, बुढ़िया के चर्खे़ के- उस पहिये का निशां भी- बूढ़े से लेके बच्चे तक- जिसको जानते हैं।।
पन्द्रह अगस्त की शब, जब रायसीना के इन- नन्हीं पहाड़ियों पर- यह चाँद उगा देखा- ऊँचे हिमालया ने, कुछ और हुआ ऊँचा। गंगों-जमन की छाती- कुछ और हुई चौड़ी। औ’, हिन्द महासागर- में ज्वार उमड़ आया। बंगाल की खाड़ी से- सागर तलक अरब के- ख़ुशियों की लहर फैली, हर गाँव-शहर फैली।।
पन्द्रह अगस्त की शब, जब राष्ट्रपति भवन में- यह चाँद चढ़ा ऊपर, चढ़ता ही गया ऊपर, सूरज उतार लाया, सूरज कि , जिसकी शोहरत- थी, डूबता नहीं है, वह डूब गया आधा- इस चाँद की चमक से।।
पन्द्रह अगस्त की शब, इस चाँद को निहारा, जब लाल क़िले ने तो- ख़ुशियों से झूम उट्ठीं- बेज़ान दीवारें भी। पहलू में जामा मस्जिद- की ऊँची मीनारें भी- देने लगीं दुआयें। आने लगी सदायें- हर ज़र्रे से ग़ोशे से- ये चाँद मुबारक हो। इस देश की क़िस्मत का- ये चाँद मुबारक हो। इस हिन्द की ताक़त का- ये चाँद मुबारक हो। हिन्दोस्ताँ की अज़मत का- चाँद मुबारक हो।।
रोजे़ की मुश्क़िलों के- थी बाद, ईद आयी। क़ुर्बानियाँ शहीदों की- थीं ये रंग लायीं। अब फ़र्ज़ है, हमारा- इसकी करें हिफ़ाज़त, ता’, ये रहे सलामत- औ’, कह सकें हमेशा- हर साल-गिरह पर हम- ये, एक दूसरे से- कि, चाँद मुबारक हो- ये तीन रंग वाला, हिन्दोस्ताँ की अज़मत का- चाँद मुबारक हो। ये चाँद सलामत हो, ये चाँद मुबारक हो।।
जल से भरपूर, फलों से लदी, चंदन की शीतल हवा से ठंडी।
शस्य श्यामलां मातरं।
हरी-भरी फसलों वाली मातृभूमि।
शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम् चाँदनी से नहाई, पुलकित रातें। फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्, फूलों से लदे पेड़ों की शोभा से सजी। सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्। मधुर मुस्कान वाली, मधुर वाणी वाली। सुखदां वरदां मातरम्।। सुख देने वाली, वरदान देने वाली माँ। वन्दे मातरम् मैं वंदना करता हूँ माँ की।
सप्त कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले सात करोड़ कंठों से गूंजती। निसप्त कोटि भुजैर्धृउत खरकरवाले सत्तर करोड़ बाहुओं से बल पाती। के बोले मा तुमी अबले कौन कहता है कि तुम निर्बल हो, माँ?
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम् असीम बल की धारिणी, उद्धार करने वाली को प्रणाम। रिपुदलवारिणीं मातरम् शत्रु दल को नष्ट करने वाली माँ। वन्दे मातरम् मैं वंदना करता हूँ माँ की।
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म तुम ही ज्ञान हो, तुम ही धर्म हो,
तुम ही हृदय हो, तुम ही जीवन का मर्म हो। त्वं हि प्राणाः शरीरे तुम ही प्राण हो शरीर के। बाहुते तुमि मा शक्ति, बाहु में तुम हो शक्ति। हृदये तुमि मा भक्ति, हृदय में तुम हो भक्ति। तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे मन्दिरे तेरी ही प्रतिमा हम मंदिर-मंदिर में गढ़ते हैं।
वन्दे मातरम् मैं वंदना करता हूँ माँ की।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी तुम ही हो दुर्गा, दसों अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाली। कमला कमलदल विहारिणी तुम ही हो लक्ष्मी, कमल के दल में विहार करने वाली। वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् तुम ही हो सरस्वती, विद्या देने वाली, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। नमामि कमलां अमलां अतुलाम् निर्मल, अद्वितीय कमल जैसी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। सुजलां सुफलां मातरम् जल से भरपूर, फलों से लदी माँ। श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम् श्यामल, सरल, मधुर मुस्कान से सजी। धरणीं भरणीं मातरम् धरती का भार सँभालने वाली माँ। वन्दे मातरम् मैं वंदना करता हूँ माँ की।
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं मैं न सात धातु हूं, और न ही पांच कोश हूं मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा: अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म: न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य, मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं, न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं, मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।