बुधवार, 29 जून 2022

मेघा नाद घटा घटा घट घटा.../ वर्षा ऋतु में श्री कृष्ण का ध्यान

https://youtu.be/A9NjnM3gyc0 

 

मेघा नाद घटा घटा घट घटा घाटा घटा दुर्घटा,
मण्डूकस्य बको बको बक बको बाको बको बूबको ।
विद्युज्ज्योति चकी मकी चक मकी चाकी मकी दृश्यते,
इत्थं नन्दकिशोर-गोपवनिता-वाचस्पति: पातु माम्।।

अर्थ :
मेघ यानी बादल ज़ोर ज़ोर से गरज रहें हैं, बरस रहे हैं 
मण्डूक यानी मेंडक बाहर आ कर इस बारिश में 
"बक बक" सी अपनी मधुर ध्वनी चारों ओर फैला रहे हैं 
विद्युत ज्योति यानी बिजलियाँ अपनी चमक धमक से 
इस द्रश्य को सुशोभित कर रही हैं और एसे ही भव्य 
वातावरण में बाल गोपाल कृष्ण अपनी बचपन की 
लीलाएँ कर रहे हैं।

मंगलवार, 28 जून 2022

हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं.../ हनुमान ध्यान /

https://youtu.be/ZSqk-3ZMwa8  

ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं 
परिलिख्यति लिख्यति वामतले।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं 
यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा।

अर्थ : महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ 
यह जो लिखेगा, उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा। 
वाम यह शब्द यहाँ पर वाममार्ग का यानी कुमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है। वाममार्ग 
पर जाने की वृत्ति, खिंचाव यानी वामलता। (जैसे कोमल-कोमलता, वैसे वामल-वामलता।) 
इस वामलता को यानी दुरितता को, तिमिरप्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं। 

सोमवार, 27 जून 2022

ध्याये नित्यं महेशं.../ शिव ध्यान मन्त्र / गायन : पण्डित जसराज

 https://youtu.be/RE2gIMy9ZlQ 

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
अर्थ : चांदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो ललाट पर सुन्दर अर्धचन्द्र को
आभूषण रूप में धारण करते हैं, रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्जवल है, जिनके
हाथों में परशु तथा मृग, वर और अभय मुद्राएं हैं, पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवतागण
जिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो बाघ की खाल पहनते हैं, जो विश्व के आदि,
जगत् की उत्पत्ति के बीज और समस्त भयों को हरने वाले हैं, जिनके पांच मुख और तीन
नेत्र हैं, उन महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करें।

शनिवार, 25 जून 2022

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो.../ रचना : सन्त कबीर दास / गायन : मैथिली ठाकुर

 https://youtu.be/6kgiD0NDQu8 

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो। 
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।  

चन्दन काठ के बनल खटोला,
ता पर दुलहिन सूतल हो,
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो 
।।  

उठो सखी री मांग संवारो,
दूल्हा मोसे रूठल हो,
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो 
।।  

आये जमराजा पलंग चढ़ी बैठा,
नैनन अंसुआ छूटल हो,
कौन ठगवा नगरीय लूटल हो 
।।  

चार जने मिल खाट उठाइन,
चहुँ दिस भम भम उठल हो,
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो 
।।  

कहत कबीरा सुनो भाई साधो,
जग से नाता छूटल हो,
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो 
।।  

शुक्रवार, 24 जून 2022

कैसे सुकून पाऊँ तुझे देखने के बाद.../ शायर : सईद शाहिदी / गायन : तलत अज़ीज

 https://youtu.be/EWO62krgQ5A

कैसे सुकून पाऊँ तुझे देखने के बाद अब क्या ग़ज़ल सुनाऊं तुझे देखने के बाद आवाज़ दे रही है मेरी ज़िन्दगी मुझे जाऊं के या न जाऊं तुझे देखने के बाद तेरी निगाह-ऐ-मस्त ने मख़मूर कर दिया क्या मैकदे को जाऊं तुझे देखने के बाद नज़रों में ताब-ऐ-दीद ही बाक़ी नही रही किस से नज़र मिलाऊँ तुझे देखने के बाद

गुरुवार, 23 जून 2022

राम का गुणगान करिये... / गायन : गायत्री गायकवाड़-गुल्हाने

 https://youtu.be/MYZDtFFXE6M 

राम का गुणगान करिये...
गायन : गायत्री गायकवाड़-गुल्हाने

Gayatree Gaikwad- Gulhane (Gayatree G)
is one of the finest and recognized artist of 'Patiyala Gharana' and
'Kirana Gharana'. She regularly performs Khyaal, Ghazal, Dadra,
Thumri, and Abhang. Belonging to musical family, She started
receiving Hindustani Classical Vocal lessons at very tender age of 4
from her father Pt. Suryakant Ji Gaikwad (Sangeet Alankar) and
her mother Smt. Sangeeta Gaikwad (Sangeet Visharad).

राम का गुणगान करिये,
राम का गुणगान करिये।
राम प्रभु की भद्रता का,
सभ्यता का ध्यान धरिये॥

राम के गुण गुणचिरंतन,
राम गुण सुमिरन रतन धन।
मनुजता को कर विभूषित,
मनुज को धनवान करिये,
ध्यान धरिये॥

सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर,
सुजन रंजन रूप सुखकर।
राम आत्माराम,
आत्माराम का सम्मान करिये,
ध्यान धरिये॥

मंगलवार, 21 जून 2022

आरति कीजे हनुमान लला की.../ रचना : गोस्वामी तुलसी दास / स्वर : हरिहरन

 https://youtu.be/gmXzGgyZoII 

आरती कीजे हनुमान लला की।  दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवन सुत बार ना लायी ।।
लंका जारि असुर संघारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्षमण मुर्छित पड़े सकारे । लाय सजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बाएं भुजा असुर दल मारे । दहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ।।
कंचन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुंठ परमपद पावे ।।
  

सोमवार, 20 जून 2022

ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु.../ श्री सदाशिव ध्यान / शिखरिणी छंद / स्वर : अवध किशोर ओझा

 https://youtu.be/kSlztYUHq0k

ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु,पाणौ सदा यस्य वै।
फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं,घं घं च घण्टा रवम् ॥
वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं,कारुण्य पुण्यात् परम्॥
भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं,ध्यायेत् शिवं शंकरम्॥

https://youtu.be/yneL87J5kMY

यावत् तोय धरा धरा धर धरा ,धारा धरा भूधरा।। का अर्थ
यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं।।
यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रूयताम्।
तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यशः॥

https://youtu.be/D95plSAGqlc
यस्यास्ते द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं, टंट टं टं टटं टं।
तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं ,खंख खंख सखंखम्॥
डंसं डंसं डु डंसं डुहि डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्।।
ध्यायन्ते विप्रगान्ते वसतु च सकलं पातु नो चन्द्रचूड़ ||

https://youtu.be/h_Kw70xEprk
चैतन्यं मनं मनं मनमनं मानं मनं मानसम!
माया ज्वार धवं धवं धव धवं धावं धवं माधवं
स्वाहा चार चरं चर चरं चारं चरं वाचरं
वैकुंठाधिपते भवं भवभवं भावंभवं शांभवं !!

रविवार, 19 जून 2022

या तब तब वा दल्ला.../ अरबी गीत / गायिका : नैंसी अजरम

 https://youtu.be/ZMD71H32rws 

Ya Tabtab Wa Dallaa is an Arabic language song and is sung by 
Nancy Ajram. 

Ya Tabtab Wa Dallaa, from the album Ya Tabtab, was released in 
the year 2006.

Nancy Ajram, born into a Lebanese Christian family on May 16, 
1983, in Achrafieh, a district in Beirut, Lebanon, is a Lebanese singer
television personality and businesswoman. Dubbed by Spotify as the 
"Queen of Arab Pop", she is credited with influencing the revival of 
Arabic pop music in the 21st century.

Ya Tabtab wa dalla...

SingerNancy Ajram

English Translation


I comfort him and I spoil him
Or He tells me I've changed on him.
I become upset, my temper rises
But all He cares about is How to Please Him.

Go and Tell Him that I am also sometimes in moods.
One time I am upset, One Time Im ready to give him my eyes.
Who out of us is at there best at all times.
He makes me tired, and makes me want to pull out my eyes.

If I get upset from him and I be the bigger person
He says I am ignoring his feelings and he takes a stand
And If I explain to Him he says Im accusing Him.
And continues to make me feel 100 times guilty.

I am changing
His mind is so small confused my heart with him
But I love him so much.
And that is what made me patient with him so long


English Translteration of Arabic Lyrics


Ya tabtab Wadalla Yay ullanat ghayar taliih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zayardi Ya tabtab wa dalla Yay ullanat ghayar taleih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zayardi Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ya tabtab wa dalla Yay ullanat ghayar taliih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zayardi Lawaz'al minnu wa assalye'ul Ba'assar fi haq uu yakhod jam Ulawafah hemu, ye'ul baslemu Ifdzal yihat sisnim midzan Lawaz'al minnu wa assalye'ul Ba'assar fi haq uu yakhod jam Ulawafah hemu, ye'ul baslemu Ifdzal yihat sisnim midzan Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ya tabtab wa dalla Yay ullanat ghayar taliih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zaLyardi Anal batghayyar walla da'al lu Sughayar hayar albi ma'aa Wa hubbunil awi, bamut fee awi Wo talli safarni 'alla hawa Analy batghayyar walla da'al lu Sughayar hayar albi ma'aa Wa hubbunil awi, bamut fee awi Wo talli safarni 'alla hawa Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ululu tana fardu sa'at fe halah Ma rraza 'al marrat belu ayni Min fini al hal kullil aw 'at Bi taabmi aw talla 'ayni Ya tabtab wa dalla Yay ullanat ghayar taliih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zayardi Ya tabtab wa dalla Yay ullanat ghayar taliih Anaz 'al awalah Mah kullihamuz zayardi

शुक्रवार, 17 जून 2022

मानसून : संगीत वीडियो / पण्डित अजोय चक्रवर्ती / गायन : रंजनी एवं गायत्री / आई आई टी मद्रास की प्रस्तुति

 https://youtu.be/UhBZdFmpmcg 

Lyrics : Vaan Sirappu - Tirukkural -
authored by Tiruvalluvar who is said to have lived in
Tirumayilai (modern day Chennai) in the 1st Millennium CE.

Thiruvalluvar, commonly known as Valluvar, was a celebrated 
Tamil poet and philosopher. He is best known as the author of 
the Tirukkuṟaḷ, a collection of couplets on ethics, political and 
economical matters, and love. The text is considered an exceptional 
and widely cherished work of Tamil literature.

Tirukkural, (Tamil: “Sacred Couplets”) also spelled 
Tirukural or Thirukkural, also called Kural, the most 
celebrated of the Patiren-kirkkanakku (“Eighteen Ethical 
Works”) in Tamil literature and a work that has had an 
immense influence on Tamil culture and life. It is usually 
attributed to the poet Tiruvalluvar, who is thought to have 
lived in India in the 6th century, though some scholars 
assign an earlier date (1st century BC). In its practical 
concerns, aphoristic insights into daily life, and universal 
and timeless approach, the Tirukkural has been compared 
to the great books of the world’s major religions.

Kurals are Tamil short couplets, of seven words each.

Vaan Sirappu : Sky Special (Chapter 2 of Tirukkuṟaḷ)


Water is the elixir of life.

Verse : 20

Water does not exist today The sky does not exist today for anyone
in the world.

If there is no water, there is no world.

Neerindru amaiyaadhu ulakenin yaaryarkkum
vaanindru amaiyaadhu ozhukku

When water fails, functions of nature cease, you say;
Thus when rain fails, no men can walk in 'duty's ordered way'

If it be said that the duties of life cannot be discharged by any person 
without water, so without rain there cannot be the flowing of water


Visit thuLiveezhin allaalmaR Range
pasumpul thalaikaaN paridhu

If from the clouds no drops of rain are shed
'Tis rare to see green herb lift up its head

If no drop falls from the clouds, not even the green blade of grass will be seen

Verse : 15

Ketuppadhooum Kettaarkkuch ChaarvaimaR Range
eduppadhooum ellaam Mazhai
'Tis rain works all: it ruin spreads, then timely aid supplies;
As, in the happy days before, it bids the ruined rise
Rain by its absence ruins men; and by its existence restores them to fortune
Verse :11
Vaanin Rulagam Vazhangi Varudhalaal
Thaanamizhdham aendruNaraR Paatru

The world its course maintains through life that rain unfailing gives;
Thus rain is known the true ambrosial food of all that lives

By the continuance of rain the world is preserved in existence; 
it is therefore worthy to be called ambrosia

बुधवार, 15 जून 2022

बदली तेरी नज़र तो नज़ारे बदल गये.../ शायर : जिगर मुरादाबादी / गायन : वसुंधरा रतूड़ी

 https://youtu.be/tp-A9UrXQFg

The Ghazal is penned by Jigar Moradabadi Saheb and the music is
composed by Ustad Ashiq Ali Khan Saheb.
Sung by Vasundhara Raturi.

Vasundhara Raturi

Vasundhara Raturi is a versatile singer, who has been 
performing since her childhood.
Vocalist. Lifelong student of music. Poetry as a hobby. 
Lives in Delhi, from Garhwal, Uttarakhand, India.
Studied M.A in Hindustani Classical Music (Vocals) at 
Studied B.A (hons) Hindustani music (vocal) at 

बदली तेरी नज़र तो नज़ारे बदल गये...
शायर : जिगर मुरादाबादी
गायन : वसुंधरा रतूड़ी 

बदली तेरी नज़र तो नज़ारे बदल गए
वो चाँदनी वो चाँद सितारे बदल गए

लहरों से पूछ लीजिये साहिल भी है गवाह
कश्ती मेरी डूबोके वो धारे बदल गए

वो ख्वाब वो ख़याल वो अरमान वो हसरतें
बदले जो तुम तो सारे के सारे बदल गए

मैं भी वही हूँ मेरी वफाएं भी हैं वही
फिर क्यों तेरी नज़र के इशारे बदल गए

गैरों की बात पर न बुरा मानिये 'जिगर'
सच तो ये है कि हम से हमारे बदल गए 

आषाढ़़स्य प्रथम दिवसे.../ मेघदूतम् / महाकवि कालिदास / प्रस्तुति : सर्वज्ञ भूषण

  https://youtu.be/RGTZDWwpO_A 

तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्त: स कामी,
नीत्वा मासान्कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ।
आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं,
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ।
पूर्वमेघ श्लोक -२
अर्थ : विछोह में उस कामी यक्ष ने उस पर्वत पर कई मास बिता दिए। 
उसकी कलाई सुनहले कंगन के खिसक जाने से सूनी दीखने लगी। 
आषाढ़ मास के पहले दिन पहाड़ की चोटी पर झुके हुए मेघ को उसने देखा।
ऐसा जान पड़ा जैसे ढूसा मारने में मगन कोई हाथी हो।
ललित आलेख : शैलेश कुमार जैमन
sanskritbharatam@gmail.com
कुबेर के उस सेवक (हेममाली) यक्ष की नयी-नयी शादी हुई थी, 
सबेरे उठने में देर हो जाती थी | इसलिए वह रात्रि को ही कमल के 
पुष्प तोड़ कर रख लेता और जब कुबेर शिव-पूजा पर बैठते तब 
फूलों की टोकरी पहुंचा देता ।
एक दिन कुबेर ने कमल पुष्पों में भ्रमर को देखा, कुबेर को संदेह हुआ, 
उसने यक्ष से पूछा, ये पुष्प तुमने कब तोड़े थे ?
सच बात सामने आ गयी ! कुबेर ने यक्ष को एक साल का निर्वासन-दंड़ दिया। 
यक्ष रामगिरि पर्वत पर निर्वासन के दिन व्यतीत कर रहा था !
प्रिया के वियोग-दु:ख के कारण यक्ष की कलाई में से सोने के कड़े शिथिल हो 
कर गिर गये और उसकी कलाई सूनी हो गयी थी ।
आषाढ़ महिने के पहले दिन उसने देखा कि पहाड़ की चोटी पर बादल इस 
प्रकार से सटे हुए [पहाड़ का आलिंगन करते हुए] क्रीडा कर रहे हैं
जैसे कोई हाथी टीले से मिट्टी उखाड़ने [ढूसा मारने] का खेल करता है ।

बाबा नागार्जुन की एक कविता 
सन्दर्भ : मेघदूत [महाकवि कालिदास ] 
रोया यक्ष कि तुम रोये थे ?

“वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथमदिवस आषाढ-मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खडे-खडे तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था,
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बन कर उड़ने वाले
कालिदास ! सच सच बतलाना
पर-पीडा से पूर-पूर हो
थक-थक कर और चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर ! तुम कब तक सोये थे ?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे ?
कालिदास सच-सच बतलाना !
…….बाबा नागार्जुन
________

जल का एक पर्याय है वारि ।
वारि में “ज” प्रत्यय जुड़ने पर वह “पद्म” बन जाता है 
और “द” प्रत्यय जुड़ने पर “मेघ” । “वारिज” यानी कमल, 
“वारिद” यानी मेघ । जल का एक अन्य पर्याय नीर है, उसके 
साथ भी यही कथा – “नीरज” यानी कमल, “नीरद” यानी मेघ ।
स्वयं जल के साथ यही – “जलज” यानी कमल, “जलद” यानी मेघ।
जल की व्यंजना में ही मेघ और पुष्प बहुत निकट हैं, मात्र एक प्रत्यय 
के परकोटे से पृथक । वैसे यह अकारण नहीं कि कभी-कभी हम जल को 
भी मेघपुष्प की तरह देखने लगें । विशेष रूप से वर्षाजल को ।
वास्तव में, यह केवल कवि कल्पना नहीं, सच में ही जल को “मेघपुष्प” 
कहा गया है । “अमरकोश” में जल के लिए कोई सत्ताइस संज्ञाएं हैं, 
उन्हीं में से एक है – मेघपुष्प ! राजस्थान में यही “मेघपुहुप” हो जाता है। 
“मेघमोती” सुना था, किंतु “मेघपुष्प” की कल्पना नहीं की थी ।
“मेघपुष्प” सुना तो “आकाश कुसुम” की कल्पना भी मन में कौंध गई ! 
फिर यह भी सूझा कि अगर वर्षाजल मेघपुष्प है तब तो वर्षा को वृक्ष ही 
कहना होगा ना ? मैं तो कहूंगा वर्षा आकाश में उगने वाला “कल्पवृक्ष” है !
“जलज” सदैव जल में होता है । किंतु जल स्वयं मेघमालाओं का पद्मपुष्प है, 
नील उत्पल है, देवदुन्दुभि के घोष से भरा हुआ, यहां तक कल्पना का जाना 
इतना सरल नहीं।

“अमरकोश” कुल पच्चीस वर्गों में विभक्त है । आप अगर इसमें मेघ के पंद्रह 
पर्याय खोजना चाहें तो यह स्वाभाविक ही है कि आप “वारिवर्ग” में चले जाएं ।
यह अनुमान लगा लेना सरल ही है ना कि वायुवेग वाले वारिद “प्रथम काण्ड” के 
दशम् वर्ग यानी “वारिवर्ग” में ही मिलेंगे । किंतु “अमरकोशकार” ने उन्हें 
उल्लेखित किया है प्रथम काण्ड के तृतीय वर्ग “दिग्वर्ग” में । किंतु ऐसा केवल 
इसीलिए नहीं है कि मेघ “दिग्विजयी” होते हैं । ऐसा इसलिए है, कि पंचमहाभूतों 
में आकाश को “दिक्” का ही पर्याय माना गया है । अस्तु आकाश के जितने भी 
पदार्थ होंगे, वे “दिग्वर्ग” में ही होंगे। “अमरकोश” में मेघों के पंद्रह पर्याय हैं, 
यथा – तड़ित्वान, धूमयोनि, अभ्रम्, स्तनयित्नु । मेघों के नाना नामरूप ।
मेघमाला कहलाती है कादम्बिनी ।
विद्युल्लता कहलाई है शम्पा और शतह्रदा !
धारासार वर्षा को कहा है धारासम्पात् ।
धरती के तप और ताप से ही तो आकाश में धूममेघ का तोरण बंधता है। आषाढ़ के 
मास में, आर्द्रा नक्षत्र लगते ही, जब कुरबक के पुष्प झड़ जाते हैं और कांस के फूल 
खिलने में वर्षान्त तक का समय होता है, तब दिक् के देवता आकाश से मेघपुष्पों की 
वर्षा करते हैं । यह वर्षा नहीं है, यह वंदनवार है ! ऋतुओं के देवता ने अपने सबसे 
सुंदर मेघपुष्पों से चुनकर आपके लिए यह तोरण बांधा है ।
ज्येष्ठ का आयुफल गाछ पर ही गल गया, अब यह आषाढ़ के आयुष्मान दिवस हैं, 
इनका अपने भीतर संजोई नमी के पुष्पों से अभिवादन करें । मेघपुष्पों को अपने मन 
के कुसुमों से मिलने दें ।
आख़िर फूल ही तो फूल का मर्म पहचानेंगे।
शैलेश कुमार जैमन
प्राध्यापक (साहित्यविभाग)
राजकीय महाराज आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर

मंगलवार, 14 जून 2022

श्रीपञ्चमुख-हनुमत्-कवच / (मूल संस्कृत और हिन्दी अर्थ) / पाठ : सद्गुरु अनिरुद्ध बापू

 https://youtu.be/JDwt0Ll9PVM

श्रीपंचमुख हनुमत्-कवच एक अत्यंत शक्तिशाली प्रार्थना है, जो हनुमानजी के पंचमुखी
रूप को समर्पित है। यह प्रार्थना चिरंजीव हनुमानजी के पंचमुखी रूप की स्तुति है और
यह अपने भक्तों की रक्षा करता है और उनके दुश्मनों का नाश करता है। इस स्तोत्र का
महत्त्व समझाते हुए सद्गुरु अनिरुद्ध कहते हैं कि यह स्तोत्र न केवल भक्तों को सुरक्षा
प्रदान करता है, बल्कि उनकी प्रगति और विकास में भी मदद करता है।

।। हरि: ॐ ।।

॥ श्रीपञ्चमुख-हनुमत्-कवच ॥
(मूल संस्कृत और हिन्दी अर्थ)
 ॥ अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥

श्रीगणेशाय नम:।
ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:।
गायत्री छंद:। पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता।
ह्रीम् बीजम्। श्रीम् शक्ति:। क्रौम् कीलकम्।
क्रूम् कवचम्। क्रैम् अस्त्राय फट् । इति दिग्बन्ध:।
इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पञ्चमुख-विराट-हनुमानजी हैं, 
ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और ‘क्रैम् अस्त्राय फट्’ 
यह दिग्बन्ध है।
॥श्री गरुड उवाच ॥
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम् ॥१॥
गरुडजी ने कहा – हे सर्वांगसुंदर, देवों के भी देव रहनेवाले देवाधिदेव ने, हनुमानजी का उन्हें प्रिय 
रहने वाला जो ध्यान किया, वह मैं तुम्हें अब बताता हूँ।
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥२॥
पाँच मुख रहनेवाले, प्रचंड विशालकाय ऐसे, तीन गुना पाँच यानी पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) 
रहने वाले, ऐसे ये पञ्चमुख-हनुमानजी हैं। दस हाथों से युक्त, सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों 
को सिद्ध कर के देने वाले ऐसे ये (पञ्चमुख-हनुमानजी) हैं। 
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥३॥
इनका पूर्व दिशा का अथवा पूर्व दिशा की ओर देखने वाला जो मुख है, वह वानरमुख है, जिसकी 
प्रभा (तेज) कोटि (करोडों) सूर्यों के जितनी है। उनका यह मुख कराल (कराल = भयकारक) दाढ़ें 
(दंष्ट्रा) रहने वाला मुख है। भ्रुकुटि यानी भौंह और कुटिल यानी टेढी। भौंह टेढी करके देखने वाला 
ऐसा यह मुख है।
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥४॥
वक्त्र यानी चेहरा, मुख, वदन। इनका दक्षिण दिशा का अथवा दक्षिण दिशा की तरफ देखने वाला 
जो मुख है, वह नारसिंहमुख है और वह बहुत ही अद्‍भुत है। अत्यधिक उग्र ऐसा तेज रहने वाला 
शरीर (वपु = शरीर) जिनका है, ऐसे हनुमानजी (अत्युग्रतेजोवपुषं) का यह मुख भय उत्पन्न करने 
वाला (भीषणं) और भय नष्ट करने वाला मुख है। (हनुमानजी का यह मुख एक ही समय पर बुरे 
लोगों के लिए भीषण और भक्तों के लिए भयनाशक है।)
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥५॥
पश्चिम दिशा का अथवा पश्चिम दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह गरुडमुख है। वह गरुडमुख 
वक्रतुण्ड है। साथ ही वह मुख महाबल यानी बहुत ही सामर्थ्यवान है। सारे नागों का प्रशमन करने 
वाला, विष और भूत आदि का (विषबाधा, भूतबाधा आदि बाधाओं का) कृन्तन करने वाला 
(उन्हें पूरी तरह नष्ट करने वाला) ऐसा यह (पञ्चमुख-हनुमानजी का) गरुडानन है।
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥६ ॥
उत्तर दिशा का अथवा उत्तर दिशा में देखने वाला मुख यह वराहमुख है। वह कृष्ण वर्ण का 
(काले रंग का) है, तेजस्वी है, जिसे आकाश की उपमा दे सकते हैं ऐसा है। पातालनिवासियों का 
प्रमुख रहने वाला वेताल और भूलोक में कष्ट पहुँचाने वालीं बीमारियों का प्रमुख रहने वाला ’ज्वर’ 
इनका कृन्तन करने वाला, इन्हें समूल नष्ट करने वाला ऐसा यह उत्तर दिशा का वराहमुख है।
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥७॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥८॥
ऊर्ध्व दिशा का या ऊर्ध्व दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह अश्वमुख है। हय यानी घोड़ा = अश्व। 
यह दानवों का नाश करने वाला ऐसा श्रेष्ठ मुख है। हे विप्रेन्द्र (श्रेष्ठ गायत्री उपासक), तारकाख्य 
नाम के प्रचंड असुर को जिसने नष्ट किया है, ऐसा यह अश्वमुख है। 
सारे शत्रुओं का हरण करने वाले श्रेष्ठ पञ्चमुख-हनुमानजी की चरणों में शरण रहो।
रुद्र और दयानिधि ऐसे दोनों रूप धारण करनेवाले हनुमानजी का ध्यान करें। (अब गरुडजी 
पञ्चमुख-हनुमानजी के दस आयुधों के बारे में बता रहे हैं।)
खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥९॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥१०॥
(पञ्चमुख-हनुमानजी के हाथों में) तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग नाम का आयुध, पाश, अंकुश, 
पर्वत हैं। साथ ही, मुष्टि नाम का आयुध, कौमोदकी गदा भी हैं। पञ्चमुख-हनुमानजी ने एक 
हाथ में वृक्ष और एक हाथ में कमंडलु भी धारण किया है।
पञ्चमुख-हनुमानजी ने भिंदिपाल धारण किया है। भिंदिपाल यह लोहे से बना विलक्षण 
अस्त्र है। इसे फेंककर मारा जाता है, साथ ही इसमें से बाण भी चला सकते हैं। पञ्चमुख-हनुमान
जी का दसवाँ आयुध है ‘ज्ञानमुद्रा’। ऐसे दस आयुध और इन आयुधों के जाल उन्होंने धारण किये 
हैं। ऐसे इन मुनिपुंगव (मुनिश्रेष्ठ) पञ्चमुख-हनुमानजी की मैं (गरुड) स्वयं भक्ति करता हूँ।
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्॥११॥
वे प्रेतासन पर बैठे हैं (प्रेतासनोपविष्ट) (उपविष्ट का अर्थ है बैठे हुए)। वे सारे अलंकारों से भूषित हैं 
(आभरण यानी अलंकार, गहने)। सारे अलंकारों से सुशोभित दिखनेवाले (सारे अलंकारों से = सकल 
ऐश्‍वर्यों से विभूषित) ऐसे वे हैं। दिव्य माला एवं दिव्य वस्त्र (अंबर) को उन्होंने धारण किया है। साथ 
ही दिव्यगंध का लेप उन्होंने शरीर पर लगाया है।
सर्वाश्‍चर्यमयं देवं हनुमद्विश्‍वतो मुखम् ॥
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्।
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥१२॥
सकल आश्‍चर्यों से भरे हुए, आश्‍चर्यमय ऐसे ये हमारे भगवान हैं। विश्‍व में सर्वत्र जिन्होंने मुख 
किया है, ऐसे ये पञ्चमुख-हनुमानजी हैं। ऐसे ये पॉंच मुख रहने वाले (पञ्चास्य), अच्युत और 
अनेक अद्भुत वर्णयुक्त (रंगयुक्त) मुख रहने वाले हैं।
शश यानी खरगोश। शश जिसकी गोद (अंक) में है ऐसा चन्द्र यानी शशांक। ऐसे शशांक को यानी 
चन्द्रमा को जिन्होंने माथे (शिखर) पर धारण किया है, ऐसे ये (शशांकशिखर) हनुमानजी हैं। 
कपियों में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले ऐसे ये हनुमानजी हैं। पीताम्बर आदि, एवं मुकुट से जिनका अंग 
सुशोभित है, ऐसे ये हैं। पिङ्गाक्षं, आद्यम् और अनिशं ये तीन शब्द यहाँ पर हैं। गुलाबी आभायुक्त 
पीतवर्ण के जिनके अक्ष हैं (इंद्रिय/आँखें) ऐसे ये हैं। ये आद्य यानी प्रथम हैं। ये अनिश हैं यानी 
निरंतर हैं अर्थात् शाश्‍वत हैं। ऐसे इन पञ्चमुख-हनुमानजी का हम मनःपूर्वक स्मरण करते हैं।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥
वानरश्रेष्ठ ऐसे ये अत्यधिक उत्साहपूर्ण हनुमानजी सारे शत्रुओं का नि:पात करनेवाले हैं। 
हे श्रीमन् पञ्चमुख-हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए। मेरी रक्षा कीजिए। संकट में 
से मेरा उद्धार कीजिए।
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा।
महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ यह जो लिखेगा, 
उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा। वाम यह शब्द यहाँ पर 
वाममार्ग का यानी कुमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है। वाममार्ग पर जाने की वृत्ति, खिंचाव 
यानी वामलता। (जैसे कोमल-कोमलता, वैसे वामल-वामलता।) इस वामलता को यानी 
दुरितता को, तिमिरप्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं।
अब हर एक मुख को ‘स्वाहा’ कहकर नमस्कार किया है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा।
सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पञ्चमुख-हनुमानजी 
को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा।
दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक मुख रहने वाले (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले 
दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा।
सारे विषों का हरण करने वाले पश्‍चिममुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पञ्चमुख-हनुमानजी 
को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा।
सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पञ्चमुख-हनुमान
जी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा।
सकल जनों को वश में करने वाले ऊर्ध्वमुख को, अश्‍वमुख को, भगवान श्री पञ्चमुख-हनुमान
जी को नमस्कार।
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:॥
आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: पुन: नमस्कार।
|| हरि ॐ ||