रविवार, 30 अप्रैल 2023

माता भवानी काली.../ भारतीय शास्त्रीय संगीत / राग : दुर्गा / गायन : पूर्वी गरुड़

 https://youtu.be/XVZeTGC569Y 

माता भवानी काली

माता भवानी काली
दुर्गा गौरी विघनहारिनी भवतारिनी ।

ज्ञानदेवी सुरसती 
मधुरभाषिनी सुखदायिनी ॥

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

छूम छननन, बिछुआ बाजे.../ आगरा घराने की बंदिश / राग : जौनपुरी / गायन : विदुषी दीपाली नाग

 https://youtu.be/HuXAD63L9qs  

विदुषी दीपाली नाग (१९२२-२००९)
आगरा घराने की दीपाली नाग ने ऐसे मानक स्थापित किए, जिनमें से 
अधिकांश का मिलान करना मुश्किल होगा। २२ फरवरी, १९२२ को 
दार्जिलिंग में जन्मी, उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एमए पूरा किया और 
ट्रिनिटी कॉलेज में पश्चिमी संगीत का अध्ययन किया। अंग्रेजी में 
स्नातकोत्तर, दीपाली नाग ने कम उम्र में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में 
कदम रखा और उस्ताद फैयाज खान, बशीर खान और 
तस्सुदक हुसैन खान जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों से प्रशिक्षण प्राप्त किया, 
जो सभी आगरा घराने के थे।
उन्होंने १९३९ में ऑल इंडिया रेडियो से प्रसारण शुरू किया और उसी 
साल एचएमवी और अन्य रिकॉर्डिंग कंपनियों के साथ भी। वह पूरे भारत 
में और आकाशवाणी पर संगीत सम्मेलनों में एक नियमित ख्याल कलाकार 
थीं। उन्होंने राग आधारित बंगाली गीतों के लिए एक प्रेम विकसित 
किया। उन्होंने कई ऐसी रचनाएं रिकॉर्ड की, जो बेहद लोकप्रिय हुईं। 
वह लगभग बीस वर्ष की थीं, जब उन्होंने भारत के दिवंगत प्रधान मंत्री 
श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रख्यात वैज्ञानिक और वैज्ञानिक सलाहकार 
डॉ. बी. डी. नाग चौधरी से विवाह किया। दीपाली नाग ने ८७ वर्ष की 
आयु में रविवार, २० दिसंबर, २००९ को अंतिम सांस ली।


छूम छननन, बिछुआ बाजे 
मोरी माई 
कैसे मैं जाऊँ पी के अँगनवा 
छूम छननन, बिछुआ बाजे
छूम छननन, बिछुआ बाजे

चार दिना ते अगम भइल बा 
मेरे तो जिया के सब दुःख भाजो
छूम छननन, बिछुआ बाजे
छूम छननन, बिछुआ बाजे

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

मोहे छेड़ो न.../ गायन एवं अभिनय श्रीमती फ़ैयाज़

 https://youtu.be/2cSpub_cMcw  


मोहे छेड़ो न...

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

शिवा जी महाराज की अविजेयता का रहस्य / रवीन्द्र नाथ टैगोर की बाँग्ला कविता 'प्रतिनिधि' / श्री भक्ति चारु स्वामी

https://youtu.be/LdJhEt-vutE   

বসিয়া প্রভাতকালে                
সেতারার দুর্গভালে
শিবাজি হেরিলা এক দিন--
রামদাস গুরু তাঁর                 
ভিক্ষা মাগি দ্বার দ্বার
ফিরিছেন যেন অন্নহীন।
ভাবিলা, এ কী এ কাণ্ড!          
গুরুজির ভিক্ষাভাণ্ড--
ঘরে যাঁর নাই দৈন্যলেশ!
সব যাঁর হস্তগত,                   
রাজ্যেশ্বর পদানত,
তাঁরো নাই বাসনার শেষ!
এ কেবল দিনে রাত্রে              
জল ঢেলে ফুটা পাত্রে
বৃথা চেষ্টা তৃষ্ণা মিটাবারে।
কহিলা, "দেখিতে হবে           
কতখানি দিলে তবে
ভিক্ষাঝুলি ভরে একেবারে।'
তখনি লেখনী আনি                
কী লিখি দিলা কী জানি,
বালাজিরে কহিলা ডাকায়ে,
"গুরু যবে ভিক্ষা-আশে            
আসিবেন দুর্গ-পাশে
এই লিপি দিয়ো তাঁর পায়ে।'
बसिया प्रभातकाले                
सेतारार दुर्गभाले
शिबाजि हेरिला एक दिन--
रामदास गुरु ताँर                 
भिक्षा मागि द्बार द्बार
फिरिछेन येन अन्नहीन।
भाबिला, ए की ए काण्ड!          
गुरुजिर भिक्षाभाण्ड--
घरे याँर नाइ दैन्यलेश!
सब याँर हस्तगत,                   
राज्येश्बर पदानत,
ताँरो नाइ बासनार शेष!
ए केबल दिने रात्रे              
जल ढेले फुटा पात्रे
बृथा चेष्टा तृष्णा मिटाबारे।
कहिला, "देखिते हबे          
कतखानि दिले तबे
भिक्षाझुलि भरे एकेबारे।'
तखनि लेखनी आनि                
की लिखि दिला की जानि,
बालाजिरे कहिला डाकाये,
"गुरु यबे भिक्षा-आशे            
आसिबेन दुर्ग-पाशे
एइ लिपि दियो ताँर पाये।'
গুরু চলেছেন গেয়ে,               
সম্মুখে চলেছে ধেয়ে
কত পান্থ কত অশ্বরথ!--
"হে ভবেশ, হে শংকর,             
সবারে দিয়েছ ঘর,
আমারে দিয়েছ শুধু পথ।
অন্নপূর্ণা মা আমার                 
লয়েছে বিশ্বের ভার,
সুখে আছে সর্ব চরাচর--
মোরে তুমি, হে ভিখারি,          
মার কাছ হতে কাড়ি
করেছ আপন অনুচর।'
সমাপন করি গান                  
সারিয়া মধ্যাহ্নস্নান
দুর্গদ্বারে আসিয়া যখন--
বালাজি নমিয়া তাঁরে              
দাঁড়াইল এক ধারে
পদমূলে রাখিয়া লিখন।
গুরু কৌতূহলভরে                 
তুলিয়া লইলা করে,
পড়িয়া দেখিলা পত্রখানি--
বন্দি তাঁর পাদপদ্ম                 
শিবাজি সঁপিছে অদ্য
তাঁরে নিজরাজ্য-রাজধানী।
পরদিনে রামদাস                  
গেলেন রাজার পাশ,
কহিলেন, "পুত্র, কহো শুনি,
রাজ্য যদি মোরে দেবে            
কী কাজে লাগিবে এবে--
কোন্‌ গুণ আছে তব গুণী?'
"তোমারি দাসত্বে প্রাণ             
আনন্দে করিব দান'
শিবাজি কহিলা নমি তাঁরে।
গুরু কহে, "এই ঝুলি              
লহ তবে স্কন্ধে তুলি,
চলো আজি ভিক্ষা করিবারে।'
শিবাজি গুরুর সাথে               
ভিক্ষাপাত্র লয়ে হাতে
ফিরিলে পুরদ্বারে-দ্বারে।
নৃপে হেরি ছেলেমেয়ে            
য়ে ঘরে যায় ধেয়ে,
ডেকে আনে পিতারে মাতারে।
অতুল ঐশ্বর্যে রত,                
তাঁর ভিখারির ব্রত!
এ যে দেখি জলে ভাসে শিলা!
ভিক্ষা দেয় লজ্জাভরে,          
হস্ত কাঁপে থরেথরে,
ভাবে ইহা মহতের লীলা।
দুর্গে দ্বিপ্রহর বাজে,                
ক্ষান্ত দিয়া কর্মকাজে
বিশ্রাম করিছে পুরবাসী।
একতারে দিয়ে তান               
রামদাস গাহে গান
আনন্দে নয়নজলে ভাসি,
"ওহে ত্রিভুবনপতি,                
বুঝি না তোমার মতি,
কিছুই অভাব তব নাহি--
হৃদয়ে হৃদয়ে তবু                  
ভিক্ষা মাগি ফির, প্রভু,
সবার সর্বস্বধন চাহি।'
অবশেষে দিবসান্তে               
নগরের এক প্রান্তে
নদীকূলে সন্ধ্যাস্নান সারি--
ভিক্ষা-অন্ন রাঁধি সুখে             
গুরু কিছু দিলা মুখে,
প্রসাদ পাইল শিষ্য তাঁরি।
রাজা তবে কহে হাসি,           
"নৃপতির গর্ব নাশি
করিয়াছ পথের ভিক্ষুক--
প্রস্তুত রয়েছে দাস,                
আরো কিবা অভিলাষ--
গুরু-কাছে লব গুরু দুখ।'
গুরু কহে, "তবে শোন্‌,করিলি কঠিন পণ,
অনুরূপ নিতে হবে ভার--
এই আমি দিনু কয়ে               
মোর নামে মোর হয়ে
রাজ্য তুমি লহ পুনর্বার।
তোমারে করিল বিধি             
ভিক্ষুকের প্রতিনিধি,
রাজ্যেশ্বর দীন উদাসীন।
পালিবে যে রাজধর্ম                
জেনো তাহা মোর কর্ম,
রাজ্য লয়ে রবে রাজ্যহীন।'

गुरु चलेछेन गेये,               
सम्मुखे चलेछे धेये
कत पान्थ कत अश्बरथ!--
"हे भबेश, हे शंकर,             
सबारे दियेछ घर,
आमारे दियेछ शुधु पथ।
अन्नपूर्णा मा आमार                 
लयेछे बिश्बेर भार,
सुखे आछे सर्ब चराचर--
मोरे तुमि, हे भिखारि,          
मार काछ हते काड़ि
करेछ आपन अनुचर।'
समापन करि गान                  
सारिया मध्याह्नस्नान
दुर्गद्बारे आसिया यखन--
बालाजि नमिया ताँरे              
दाँड़ाइल एक धारे
पदमूले राखिया लिखन।
गुरु कौतूहलभरे                 
तुलिया लइला करे,
पड़िया देखिला पत्रखानि--
बन्दि ताँर पादपद्म                 
शिबाजि सँपिछे अद्य
ताँरे निजराज्य-राजधानी।
परदिने रामदास                  
गेलेन राजार पाश,
कहिलेन, "पुत्र, कहो शुनि,
राज्य यदि मोरे देबे            
की काजे लागिबे एबे--
कोन्‌ गुण आछे तब गुणी?'
"तोमारि दासत्बे प्राण             
आनन्दे करिब दान'
शिबाजि कहिला नमि ताँरे।
गुरु कहे, "एइ झुलि              
लह तबे स्कन्धे तुलि,
चलो आजि भिक्षा करिबारे।'
शिबाजि गुरुर साथे               
भिक्षापात्र लये हाते
फिरिले पुरद्बारे-द्बारे।
नृपे हेरि छेलेमेये            
भये घरे याय धेये,
डेके आने पितारे मातारे।
अतुल ऐश्बर्ये रत,                
ताँर भिखारिर ब्रत!
ए ये देखि जले भासे शिला!
भिक्षा देय लज्जाभरे,          
हस्त काँपे थरेथरे,
भाबे इहा महतेर लीला।
दुर्गे द्बिप्रहर बाजे,                
क्षान्त दिया कर्मकाजे
बिश्राम करिछे पुरबासी।
एकतारे दिये तान               
रामदास गाहे गान
आनन्दे नयनजले भासि,
"ओहे त्रिभुबनपति,                
बुझि ना तोमार मति,
किछुइ अभाब तब नाहि--
हृदये हृदये तबु                  
भिक्षा मागि फिर, प्रभु,
सबार सर्बस्बधन चाहि।'
अबशेषे दिबसान्ते                
नगरेर एक प्रान्ते
नदीकूले सन्ध्यास्नान सारि--
भिक्षा-अन्न राँधि सुखे             
गुरु किछु दिला मुखे,
प्रसाद पाइल शिष्य ताँरि।
राजा तबे कहे हासि,           
"नृपतिर गर्ब नाशि
करियाछ पथेर भिक्षुक--
प्रस्तुत रयेछे दास,                
आरो किबा अभिलाष--
गुरु-काछे लब गुरु दुख।'
गुरु कहे, "तबे शोन्‌,करिलि कठिन पण,
अनुरूप निते हबे भार--
एइ आमि दिनु कये               
मोर नामे मोर हये
राज्य तुमि लह पुनर्बार।
तोमारे करिल बिधि              
भिक्षुकेर प्रतिनिधि,
राज्येश्बर दीन उदासीन।
पालिबे ये राजधर्म                
जेनो ताहा मोर कर्म,
राज्य लये रबे राज्यहीन।'

"বৎস, তবে এই লহো            
মোর আশীর্বাদসহ
আমার গেরুয়া গাত্রবাস--
বৈরাগীর উত্তরীয়                  
পতাকা করিয়া নিয়ো'
কহিলেন গুরু রামদাস।
নৃপশিষ্য নতশিরে                 
বসি রহে নদীতীরে,
চিন্তারাশি ঘনায়ে ললাটে।
থামিল রাখালবেণু,                
গোঠে ফিরে গেল ধেনু,
পরপারে সূর্য গেল পাটে।
পূরবীতে ধরি তান                 
একমনে রচি গান
গাহিতে লাগিলা রামদাস,
"আমারে রাজার সাজে   
বসায়ে সংসারমাঝে
কে তুমি আড়ালে কর বাস!
হে রাজা, রেখেছি আনি 
তোমারি পাদুকাখানি, 
আমি থাকি পাদপীঠতলে--
সন্ধ্যা হয়ে এল ওই,              
আর কত বসে রই!
তব রাজ্যে তুমি এসো চলে।'
"बत्स, तबे एइ लहो            
मोर आशीर्बादस
आमार गेरुया गात्रबास--
बैरागीर उत्तरीय                  
पताका करिया नियो
कहिलेन गुरु रामदास।
नृपशिष्य नतशिरे                 
बसि रहे नदीतीरे,
चिन्ताराशि घनाये ललाटे।
थामिल राखालबेणु,                
गोठे फिरे गेल धेनु,
परपारे सूर्य गेल पाटे।
पूरबीते धरि तान                 
एकमने रचि गान
 गाहिते लागिला रामदास,
"आमारे राजार साजे   
बसाये संसारमाझे
के तुमि आड़ाले कर बास!
हे राजा, रेखेछि आनि 
तोमारि पादुकाखानि,
आमि थाकि पादपीठतले--
सन्ध्या हये एल ओइ,              
आर कत बसे रइ!
तब राज्ये तुमि एसो चले।'

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

वीर हनुमाना अति बलवाना.../ गायन : अयाची ठाकुर एवं मैथिली ठाकुर

https://youtu.be/W6ahBGT3A84  


वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । जो कोई आवे, अरज लगावे, सबकी सुनियो रे, प्रभु मन बसियो रे । जो कोई आवे, अरज लगावे, सबकी सुनियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । बजरंग बाला फेरू थारी माला, संकट हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । बजरंग बाला फेरू थारी माला, संकट हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । ना कोई संगी, हाथ की तंगी, जल्दी हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । ना कोई संगी, हाथ की तंगी, जल्दी हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । अर्जी हमारी, मर्ज़ी तुम्हारी, कृपा करियो रे, प्रभु मन बसियो रे । अर्जी हमारी, मर्ज़ी तुम्हारी, कृपा करियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । रामजी का प्यारा, सिया का दुलारा, संकट हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । रामजी का प्यारा, सिया का दुलारा, संकट हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे । वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रभु मन बसियो रे ।