बुधवार, 12 अप्रैल 2023

शमा हूँ, फूल हूँ, या रेत के क़दमों का निशां.../ मीना कुमारी

 https://youtu.be/DpsKKYRXM3k

शायरा : मीना कुमारी
आवाज़ : मीना कुमारी
संगीत : ख़य्याम

शमा हूँ, फूल हूँ, या रेत के क़दमों का निशां...
आप को हक़ है, मुझे जो भी जी चाहे कहें...

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली

ये नूर कैसा है, राख का सा रंग पहने
बर्फ़ की लाश है, लावे का सा बदन पहने
गूंगी चाहत है, रुसवाई का कफ़न पहने
हर एक क़तरा मुक़द्दस है मैले आँसू का
एक हुज़ूम-ए-अपाहिज है, आब-ए-क़ौसर पर
ये कैसा शोर है, जो बे-आवाज़ फैला है
रुपहली छाँव में बदनामी का डेरा है
ये कैसी जन्नत है जो चौंक-चौंक जाती है
एक इंतज़ार-ए-मुजस्सम का नाम ख़ामोशी
और एहसास-ए-बे-करां पे ये सरहद कैसी
दर-ओ-दीवार कहाँ रूह की आवारगी के
नूर के वादी तलक लम्स का एक सफ़र-ए-तवील
हर एक मोड़ पे बस दो ही नाम मिलते हैं
मौत कह लो, जो मोहब्बत नहीं कहने पाओ

चाँद तन्हा है आसमान तन्हा दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा बुझ गई आस छुप गया तारा थर-थराता रहा धुंआ तन्हा ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा है और जान तन्हा हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा जलती बुझती सी रौशनी के परे सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें