https://youtu.be/cQCqTDA5XM0
जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई
मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे
कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’
नमस्ते, 'बतियां दौरावत’ के सभी सुधी श्रोताओं को आज ले चलती हूँ नंदनंदन के दर्शन कराने। भक्त सिरोमणि मीराबाई की नज़रोंसे, उन्हें जैसा दिखाई दिये, वैसे।
यूँ तो श्रीकृष्ण परमात्मा की छबि का वर्णन करनेवाले अनगिनत पद मिलते हैं, और मीराबाई भी इस छबि से मोहित रहीं। उन्होंने भी इस छबि का वर्णन करने हेतु कई पद लिखें ।आज जो पद हम सुनेंगे उसके शब्द है
जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई
गिरिधर गोपाल के मुखचंद्र से मीराबाई को तुरन्त ही लगाव हो गया। सिरपर धारण किए हुए मुकुटपर लहर रहा मोरपिच्छ, भालप्रदेशपर केसर तिलक,
मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे
अर्धोन्मीलित नयन, उगते सूरज के वर्णवाले अधरोंपर मंद मंद मुसकान, कानों में मकराकृती कुंडल, जिनकी प्रभा कपोल - अर्थात् गालों पर छा रही है। और - यह प्रतिमा मुझे बहुतही मनभावन लगती है, कि गालों पर छा रही कुंडलप्रभा कुंडलों की दोलायमान होने की वजह से ऐसा लग रहा है मानों मन का मीन मानसरोवर को त्यागकर कुंडलों के मकर से मिलने के लिए गालोंपर आ पहुंचा हो…।
कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’
श्रीकृष्ण परमात्मा की विलोभनीय छबि का वर्णन करते समय मीरा अपनेआप को किसी भी सर्वसामान्य गोपी की भूमिका में विलीन कर देती हैं। यह भावना किसी भी गोपी की हो सकती है, मीरा की अकेली की नहीं।
“चालां वाही देस”, या “माई म्हाने सुपणां में परणी गोपाल”, या मीराबाई का सर्वज्ञात पद “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई” इन सारे पदों में जो भावना है, वह मीरा की अकेली की है, कोई अन्य सामान्य गोपी ऐसी भावना महसूस नहीं कर सकती। यह तो मीरा की प्रतिभा की उडान है। यह है श्रीकृष्ण परमात्मा से एकाकार होने पर जो आनंद प्राप्त हुआ उसका आविष्कार!
चूंकि यह भावना मीरा की अकेली की नहीं, इसलिए इसे युगलगीत की तरह प्रस्तुत किया है। इसे स्वर दिया है, मेरी दो गुणी विद्यार्थिनियों- शरयू दाते तथा शमिका भिडे ने ।
आइए, सुनते हैं, युगलगीत
“जबसे मोहिँ नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु न सुहाई।”
-अश्विनी भिडे देशपांडे
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