https://youtu.be/vpRgMYh6v8A
बतियाँ दौरावत’ के सभी श्रोताओं का मीराबाई के साथ चल रहे हमारे सफर में सादर स्वागत ।
आज का मीराबाई का पद मेरे दिल के बहुत ही करीब है, क्यूँ कि इसकी स्वररचना मेरी अत्यंत पसंदीदा, गुरुसमान स्व. शोभा गुर्टूजी की है, और इसको मैंने स्वयं शोभाताई से ही सीखा है।
मीराबाई को जब उनके मानसदेव गिरिधर गोपाल मिल जाते हैं, तब उनके पदों में एक समर्पणभाव छलकता है। परंतु जब मीराबाई हरिमिलन से वंचित रहतीं हैं, चाहे यह विरह कुछ क्षणों का ही क्यूं न हो- तब वे जलबिन मछली की तरह तड़पतीरहती हैं। विरह से व्याकुल हो उठतीं हैं। जैसे यह विरह जन्मजन्मांतर का हो ! और कहती है,
लागी सोही जाणे,
कठण लगण दी पीर
आज का मीरा भजन इसी बिरह की अगन, पीडा को चित्रित करता है।
सांवरिया, आज्यो म्हारा देस,
थारी सांवरी सुरतवालो भेस,
आज्यो म्हारा देस ॥
पद की स्वररचना का आधार है राग अहिरभैरवी- या अहिरी तोडी का।
पद के शुरुआत की 'सांवरियां…’ की पुकार उस कान्हा को वहां सुनाई देगी, जहाँ भी वो होगा। इस पुकार में मीरा की सारी तड़प उजागर होती है।
आइए, सुनते हैं, मीराबाई की पुकार - 'साँवरिया, आज्यो म्हारा देस'.
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