रविवार, 6 अप्रैल 2025

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला.../ शायर : क़तील शिफ़ाई / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/KzkZ3922bD8?si=i0XgJGyUoV0eV8dT

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू बाँहें डाल के बाँहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहों में


क्या क्या न जफ़ाएँ दिल पे सहीं पर तुम से कोई शिकवा न किया
इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में


जब चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हम से किया इक़रार-ए-वफ़ा
फिर आज हैं हम क्यों बेगाने तेरी बे-रहम निगाहों में


हम भी हैं वही तुम भी हो वही ये अपनी अपनी क़िस्मत है
तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से हम डूब गए हैं आहों में

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