ग़ज़ल
-अरुण मिश्र.
चली हवा तो, रुकी कश्तियां, लगीं हिलने।
घटायें फिर से, तेरी यादों की, लगीं घिरने॥
तुम्हारे टाँके बटन, औ' तेरा बुना स्वेटर।
बदन पे मेरे, तेरी उँगलियाँ, लगीं फिरने॥
हरा है हो रहा, फिर से शज़र उमीदों का।
उदासियों की ज़र्द पत्तियां, लगीं गिरने॥
समाईं झील सी आँखें, जो मेरी आँखों में।
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
'अरून' जो अब्र हैं छाये, तेरे तसव्वुर के।
फुहारें रस की हैं अ'शआर से, लगीं गिरने॥
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें