ग़ज़ल
सरापा-नाज़ से क्या पूछें...........
-अरुण मिश्र.
सरापा-नाज़ से क्या पूछें, नाज़ुकी क्यों है।
उठी निगाह है, लेकिन पलक झुकी क्यों है॥
तुम्हारी खामशी , किस्से बयान करती है।
मैं जग रहा हूँ , मेरी नींद सो चुकी क्यों है॥
तुम्हारे बिन जो जिये, सोचते रहे अक्सर।
रवां है साँस पर, लगती रुकी-रुकी क्यों है॥
बहुत सलीके से हमने तो दिल की बात कही।
तुम्ही कहो भला, ये बात बेतुकी क्यों है॥
कहे था दिल, ये कहेंगे, वो कहेंगे तुझसे।
पर 'अरुन' रूबरू,हिम्मत चुकी-चुकी क्यों है॥
*
सरापा-नाज़ से क्या पूछें...........
-अरुण मिश्र.
सरापा-नाज़ से क्या पूछें, नाज़ुकी क्यों है।
उठी निगाह है, लेकिन पलक झुकी क्यों है॥
तुम्हारी खामशी , किस्से बयान करती है।
मैं जग रहा हूँ , मेरी नींद सो चुकी क्यों है॥
तुम्हारे बिन जो जिये, सोचते रहे अक्सर।
रवां है साँस पर, लगती रुकी-रुकी क्यों है॥
बहुत सलीके से हमने तो दिल की बात कही।
तुम्ही कहो भला, ये बात बेतुकी क्यों है॥
कहे था दिल, ये कहेंगे, वो कहेंगे तुझसे।
पर 'अरुन' रूबरू,हिम्मत चुकी-चुकी क्यों है॥
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bahut salike se hamne aapni baat kahi
जवाब देंहटाएंtumhee kaho bhalaa yh baat betuki kyun hai
waah,,,wahaa bahut khub ....bahut accha likha hai aapne samay mile kabhi to zarur aaiyegaa meri post par aapka svagat hai
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय पल्लवी जी| आप को पंक्तियाँ पसंद आईं, इसके लिए मैं आभारी हूँ| ढेरों शुभकामनायें, आपके लेखन और आपके ब्लाग दोनों के लिए|
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र.