ग़ज़ल
- अरुण मिश्र.
साज़िशन पहले तो मेरे बालो - पर काटे गये।
फिर दिखावे के लिये, चुग्गे बहुत बाँटे गये॥
पा के गारंटी कि, मरने पायेंगे न भूख से।
खोदते मिट्टी गये, और पेट को पाटे गये॥
हक हमारा है, चुनें हम नाग को या साँप को।
बारी - बारी से चुना और बारहा काटे गये॥
फिर लगे खिलने नये ग़ुल फिर इलेक्शन आ गया।
पंछियों का शोर फिर, गुलशन के सन्नाटे गये॥
जब भी आई कौम पर क़ुर्बान होने की घड़ी।
रहनुमा पीछे हटे, हम ही 'अरुन' छांटे गये॥
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- अरुण मिश्र.
साज़िशन पहले तो मेरे बालो - पर काटे गये।
फिर दिखावे के लिये, चुग्गे बहुत बाँटे गये॥
पा के गारंटी कि, मरने पायेंगे न भूख से।
खोदते मिट्टी गये, और पेट को पाटे गये॥
हक हमारा है, चुनें हम नाग को या साँप को।
बारी - बारी से चुना और बारहा काटे गये॥
फिर लगे खिलने नये ग़ुल फिर इलेक्शन आ गया।
पंछियों का शोर फिर, गुलशन के सन्नाटे गये॥
जब भी आई कौम पर क़ुर्बान होने की घड़ी।
रहनुमा पीछे हटे, हम ही 'अरुन' छांटे गये॥
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