साँझ हुई है.....
-अरुण मिश्र.
साँझ हुई है।
प्रकृति-नटी ने,
सलज निमंत्रण, फिर भेजा है॥
तरुओं की फुनगी , मंदिर के
कलशों पर से, उतर रही है।
गगन-भाल, सागर-कपोल पर
मदिर अरुणिमा, पसर रही है॥
चूम रही है, हौले - हौले,
शिखर - शिखर, घाटी-घाटी को।
मधुर निशा के स्वप्न संजोये,
साँझ सलोनी, सँवर रही है॥
व्योम-सखी ने,
धरा-पुरुष को,
मधु-आमंत्रण, फिर भेजा है॥
थके हुये सूरज के घोड़ों को
भी, कुछ आराम चाहिये।
श्रम से कातर जीव-जगत को
भी, किंचित विश्राम चाहिये॥
नयी उर्जा, नये स्फुरण से,
फिर से गतिमय हो जीवन।
नव-पभात में,नव गति,लय हित,
गति को, एक विराम चाहिये॥
सांध्य-करों से,
सुख-रजनी ने,
निशा-निमंत्रण, फिर भेजा है॥
सूरज के ओझल होते ही,
सुख की सेज सजायेगी , यह।
तारों के, फूलों को चुन-चुन,
चूनर नवल, बिछायेगी, यह॥
सुघर चॉद का, तकिया रख कर,
मीठे सपन, दिखायेगी, यह।
बाँहों में भर, तन की, मन की,
सारी थकन, मिटायेगी, यह॥
'लौटौ विहग,
नीड को, अपने';
नेह - निमंत्रण, फिर, भेजा है॥
*
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिय सदा जी|
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.