ग़ज़ल
साथ जिया हो तो जानो........
-अरुण मिश्र.
इश्क़ में क्या-क्या मुश्किल आये, इश्क़ किया हो, तो जानो।
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साथ जिया हो तो जानो........
-अरुण मिश्र.
इश्क़ में क्या-क्या मुश्किल आये, इश्क़ किया हो, तो जानो।
इक-इक साँस है, कितनी भारी, ज़ह्र पिया हो, तो जानो॥
ख़ामोशी कितना बोले है, अश्कों ने क्या आम किया।
दिल ने क्या सैलाब छुपाये, ओंठ सिया हो, तो जानो॥
आँखें दो से चार हुई हों, मिल कर थिरकें हों जो कदम।
साँसें मिल क्या छेड़ें सरगम, साथ जिया हो तो जानो॥
तुमने 'अरुन' पोथी भी बाँची, ढाई आखर भी बाँचा।
पर, उस घर जाने की लज्ज़त , सीस दिया हो, तो जानो॥*
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