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गुरुवार, 28 जून 2012

रूप को फिर निखारा गया.....



रूप को फिर निखारा गया.....

-अरुण मिश्र. 
             
रूप   को,   फिर,   निखारा   गया।
आइने      में,      सँवारा      गया।।


किस    पे,    पानी   चढ़ाया   गया?
किसका,    पानी    उतारा    गया??


बान,  नयनों  के,  जब   भी  चले। 
कौन   है,    जो    न   मारा   गया??


उठ के  महफ़िल से, वो क्या चला?
मेरा   दिल   भी,   बिचारा,   गया।।


था   वो  पहलू   में,  थी  ज़िन्दगी।
अब   तो ,   ये   भी  सहारा   गया।।


क्या  क़यामत थी  कल रात,   मैं।
नाम    ले    कर,    पुकारा    गया।। 
                         *  


रविवार, 27 मई 2012

साथ जिया हो तो जानो........

ग़ज़ल

साथ जिया हो  तो जानो........
 
-अरुण मिश्र.

इश्क़  में क्या-क्या मुश्किल  आये, इश्क़  किया हो, तो  जानो। 
इक-इक  साँस  है,  कितनी  भारी,  ज़ह्र  पिया  हो,  तो  जानो॥ 

ख़ामोशी   कितना  बोले   है,   अश्कों   ने   क्या   आम  किया। 
दिल  ने   क्या  सैलाब   छुपाये,  ओंठ   सिया  हो,   तो  जानो॥

आँखें  दो  से  चार  हुई  हों,  मिल   कर  थिरकें  हों  जो  कदम। 
साँसें  मिल   क्या   छेड़ें  सरगम,   साथ  जिया  हो  तो  जानो॥ 

तुमने    'अरुन'   पोथी   भी   बाँची,    ढाई  आखर   भी   बाँचा। 
पर,  उस  घर जाने  की  लज्ज़त ,  सीस  दिया  हो,  तो  जानो॥
                                                   *