शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

लगता है ये घन बरसेंगे.......



A cloudy sky with a thin blue sky stripe on the middle
 ये घन शेषनाग के फन हैं...
















( टिप्पणी : इस बरसात में छल रहे बादलों को देख कर जो कविता हुई है 
  या शायद वर्तमान परिदृश्य में हो सकी है, वह प्रस्तुत है। )


लगता है ये घन बरसेंगे......




-अरुण मिश्र 


लगता  है,  ये  घन  बरसेंगे।


ये   घन,  विद्रूपों   के   घन  हैं।
ये घन, कलुषित काला-धन हैं।
जन-जीवन  में,  विष  उड़ेलते,
ये घन,  शेषनाग  के  फन  हैं॥


ना बरसे तो,  झुलसेंगे  तन;
बरस गये तो मन झुलसेंगे॥


ये घन,  अनाचार  के  घन  हैं।
कुत्सित  कदाचार  के  घन हैं।
बाहर - भीतर,   तम  पसारते,
ये घन,  अन्धकार के   घन हैं॥


बन्द  तिज़ोरी  में  बरसेंगे;
खुले खेत-ऑगन  तरसेंगे॥


ये  घन,   कोई    नहीं  अनाड़ी।
अन्ना  के   हैं  चतुर  खिलाड़ी।
जीवन भर, खा-पी, डकार कर,
तिनका  खोज  रहे,  हर  दाढ़ी॥


ये  बरसेंगे,  जन्तर-मन्तर;
यदि वे, बीच सदन बरसेंगे॥
                              *
कविता (2012)

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